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________________ ६१ चैतन्य चमत्कार है। विस्तार से सब बात कही है। जन्मक्षण और स्वअवसर की बात आती है। आकाश के प्रदेशों (विस्तारक्रम) का उदाहरण देकर कालक्रम (प्रवाहक्रम) समझाया है। जैसे - जो प्रदेश जहाँ-जहाँ है, वह वहीं-वहीं रहता है, उसमें आगे-पीछे होना सम्भव नहीं। उसीप्रकार जो-जो पर्यायें जिस-जिस काल में होनी हैं. वे-वे पर्यायें उसी-उसी काल में होंगी, उनका आगे-पीछे होना सम्भव नहीं। प्रत्येक पर्याय स्वयंसत् है, अहेतुक है। समयसार के बंधाधिकार में पर्याय को अहेतुक कहा है।" प्रश्न : “पर्याय अहेतुक तो है, पर इसके बाद यही होगी - यह कैसे हो सकता है ? उत्तर : "इसमें नहीं हो सकने की क्या बात है ? इसके बाद यही होगी; जो होनेवाली है, वही होगी - ऐसा ही है। मोतियों के हार का दृष्टान्त देकर समझाया है न ? जैसे - माला में जो मोती जहाँ हैं, वहीं रहेंगे। यदि उन्हें आगे-पीछे करें तो माला टूट जाएगी; उसी प्रकार जो पर्याय जिस समय होनी होगी. उसी समय होगी, आगे-पीछे करने से वस्तु व्यवस्था ही न बनेगी। उसके आगे-पीछे होने का कारण क्या है ? वह अकारण तो आगे-पीछे हो नहीं जावेगी। यदि कोई कारण है तो फिर पर्याय अहेतुक नहीं रहेगी।" प्रश्न : “प्रवचनसार भी तो कुंदकुंद का ही है। क्या किन्हीं और आचार्यों के शास्त्रों में क्रमबद्ध की बात नहीं आती?" क्रमबद्धपर्याय उत्तर : “क्यों नहीं आती? कार्तिकेयानुप्रेक्षा की गाथा ३२१ से ३२३ तक में आती है। चारों ही अनुयोगों के शास्त्रों में किसी न किसी रूप में यह बात आती ही है। फिर सर्वज्ञता की बात तो सभी शास्त्रों में है। यदि सीधी समझ में नहीं आती है तो सर्वज्ञता के आधार पर क्रमबद्धपर्याय समझनी चाहिए। केवलज्ञानी ने जैसा देखा होगा, वैसे ही होगा' का यही अर्थ तो होता है कि भविष्य में जिस समय जो पर्याय होनी है, वही होगी।" प्रश्न : "आप क्रमबद्धपर्याय को सिद्ध करने में सर्वज्ञता का सहारा क्यों लेते हैं ? सीधा ही समझाइये न?" उत्तर : "अरे भाई! हमने तो यह कहा है कि जब सीधा समझ मेंन आसकेतोसर्वज्ञताका सहारालेना चाहिये, क्योंकि सर्वज्ञता के आधार पर समझने में सरलतारहती है।" प्रश्न : “सर्वज्ञता के आधार पर समझने में सरलता कैसे रहती है ?" उत्तर : "सर्वज्ञ भगवान तीन लोक के समस्त द्रव्यों और उनकी त्रिकालवर्ती समस्त पर्यायों को एक साथ जानते हैं। भूतकाल और वर्तमान पर्यायों के साथ-साथ वे भविष्य में होने वाली पर्यायों को भी जानते हैं। प्रश्न : “जानते हैं का क्या तात्पर्य हैं ?" उत्तर : “यही कि जिस द्रव्य की जो पर्याय भविष्य में जिस समय जैसी होनी है, उसे सर्वज्ञ अभी जानते हैं। अतः (32)
SR No.008346
Book TitleChaitanya Chamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size204 KB
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