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आचार्य
जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र की अधिकता से प्रधान पद प्राप्त करके मुनिसंघ के नायक हुए हैं तथा जो मुख्यपने तो निर्विकल्प स्वरूपाचरण में ही मग्न रहते हैं, पर कभी-कभी रागांश के उदय से करुणाबुद्धि हो तो धर्म के लोभी अन्य जीवों को धर्मोपदेश देते हैं, दीक्षा लेने वाले को योग्य जान दीक्षा देते हैं, अपने दोष प्रकट करने वाले को प्रायश्चित्त विधि से शुद्ध करते हैं ऐसा आचरण करने और कराने वाले आचार्य कहलाते हैं।
उपाध्याय
जो बहुत जैन शास्त्रों के ज्ञाता होकर संघ में पठन-पाठन के अधिकारी हुए हैं तथा जो समस्त शास्त्रों का सार आत्मस्वरूप में एकाग्रता है, अधिकतर तो उसमें लीन रहते हैं, कभी-कभी कषायांश के उदय से यदि उपयोग वहाँ स्थिर न रहे तो उन शास्त्रों को स्वयं पढ़ते हैं, औरों को पढ़ाते हैं - वे उपाध्याय हैं। ये मुख्यतः द्वादशाङ्ग के पाठी होते हैं । साधु
आचार्य, उपाध्याय को छोड़कर अन्य समस्त जो मुनिधर्म के धारक हैं और आत्मस्वभाव को साधते हैं, बाह्य २८ मूलगुणों को अखंडित पालते हैं, समस्त आरंभ और अंतरंग परिग्रह से रहित होते हैं, सदा ज्ञानध्यान में लवलीन रहते हैं। सांसारिक प्रपंचों से सदा दूर रहते हैं, उन्हें साधु परमेष्ठी कहते हैं।
इस प्रकार पंच परमेष्ठी का स्वरूप वीतराग-विज्ञानमय है, अतः वे पूज्य हैं।
प्रश्न -
१. पंच परमेष्ठी किसे कहते हैं ?
२. अरहंत और सिद्ध परमेष्ठियों का स्वरूप बतलाइये एवं उनका अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
पाठ तीसरा
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श्रावक के अष्ट मूलगुण
प्रबोध क्यों भाई ! इस शीशी में क्या है ?
सुबोध शहद ।
प्रबोध - क्यों ?
सुबोध - वैद्यजी ने दवाई दी थी और कहा था कि शहद या चीनी (शक्कर) की चासनी में खाना । अतः बाजार से शहद लाया हूँ ।
प्रबोध तो क्या तुम शहद खाते हो ? मालूम नहीं ? यह तो महान्
अपवित्र पदार्थ है। मधु-मक्खियों का मल है और बहुत से त्रस - जीवों के घात से उत्पन्न है। इसे कदापि नहीं खाना चाहिए।
सुबोध - भाई, हम तो साधारण श्रावक हैं, कोई व्रती थोड़े ही हैं।
प्रबोध - साधारण श्रावक भी अष्ट मूलगुण का धारी और सप्त व्यसन का त्यागी होता है। मधु (शहद) का त्याग अष्ट मुलगुणों में आता है।
सुबोध - मूलगुण किसे कहते हैं और अष्ट मूलगुण में क्या-क्या आता है?
प्रबोध - निश्चय से तो समस्त पर पदार्थों से दृष्टि हटाकर अपनी