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अध्यापक
दूसरा छात्र
अध्यापक
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अध्यापक
होगा ? जब हम आज भी उत्सव मनाते हैं, तो तब का क्या कहना ?
हाँ, वे नाथवंशीय क्षत्रिय राजकुमार थे। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला देवी था। उन्होंने तो उत्सव मनाया ही था, पर साथ ही सारी जनता ने यहाँ तक कि स्वर्ग के देव तथा इन्द्रादिकों ने भी उत्सव मनाया था ।
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उनका ही जन्मोत्सव क्यों मनाया जाता है, औरों का क्यों नहीं ?
पहला छात्र अच्छा तो आज जन्म-मरण का नाश करने वाले का
जन्मोत्सव है।
उनका यह अन्तिम जन्म था। इसके बाद तो उन्होंने जनम-मरण का नाश ही कर दिया। वे वीतराग और सर्वज्ञ बने। जन्म लेना कोई अच्छी बात नहीं है, पर जिस जन्म में जन्म-मरण का नाश कर भगवान बना जा सके, वही जन्म सार्थक है।
दूसरा छात्र - गुरुजी, आपने उनके माता-पिता का नाम तो बताया, पर पत्नी और बच्चों का नाम तो बताया ही नहीं ।
उन्होंने शादी ही नहीं की थी। अतः पत्नी और बच्चो का प्रश्न ही नहीं उठता। उनके माता-पिता कोशिश कर हार गये, पर उन्हें शादी करने को राजी न कर सके।
तीसरा छात्र तो क्या वे साधु हो गये थे ?
अध्यापक
और नहीं तो क्या ? बिना साधु हुए कोई भगवान बन
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पहला छात्र - इसका मतलब यह हुआ कि वे ४२ वर्ष की उम्र में केवलज्ञानी बन गये थे ।
अध्यापक - हाँ, फिर उनका लगातार ३० वर्ष तक सारे भारतवर्ष में समवशरण सहित विहार तथा दिव्यध्वनि द्वारा तत्त्व का उपदेश होता रहा। अंत में पावापुर में आत्मध्यान में लीन हो ७२ वर्ष की आयु में दीपावली के दिन मुक्ति प्राप्त की।
दूसरा छात्र अध्यापक
सकता है क्या ? उन्होंने तीस वर्ष की यौवनावस्था में नग्न दिगम्बर साधु होकर घोर तपश्चरण किया था । लगातार बारह वर्ष की आत्मसाधना के बाद उन्होंने केवलज्ञान की प्राप्ति की थी।
छात्र
अध्यापक
यह पावापुर कहाँ है ?
पावापुर बिहार में नवादा रेल्वे स्टेशन के पास में है।
- तो दीपावली भी उनकी मुक्ति प्राप्ति की खुशी में मनाई जाती है ?
हाँ! हाँ !! दीपावली कहो चाहे महावीर निर्वाणोत्सव, एक ही बात है। उसी दिन उनके प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति गौतम को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। वे गौतम गणधर के नाम से जाने जाते हैं ।
पहला छात्र वे तीस वर्ष तक क्या उपदेश देते रहे ?
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अध्यापक
• यह बात तो तुम विस्तार से शाम की सभा में विद्वानों के मुख से ही सुनना। मैं तो अभी उनके द्वारा दी गई दोचार शिक्षायें बताये देता हूँ
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