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________________ पुत्र - किसी जीव को सताना, मारना उसका दिल दुखाना ही हिंसा है न? पिता - हाँ, दुनिया तो मात्र इसी को हिंसा कहती है; पर अपनी आत्मा में जो मोह-राग-द्वेष उत्पन्न होते हैं वे भी हिंसा हैं. इसकी खबर उसे नहीं। पुत्र - ऐं ! तो फिर गुस्सा करना और लोभ करना आदि भी हिंसा होगी? पिता - सभी कषायें हिंसा हैं। कषायें अर्थात् राग-द्वेष और मोह को ही तो भावहिंसा कहते हैं। दूसरों को सताना-मारना आदि तो द्रव्यहिंसा है। पुत्र - जैसा देखा, जाना और सुना हो, वैसा ही न कहना झूठ है, इसमें सच्ची समझ की क्या जरूरत है? पिता - जैसा देखा, जाना और सुना हो, वैसा ही न कह कर अन्यथा कहना तो झूठ है ही, साथ ही जब तक हम किसी बात को सही समझेंगे नहीं, तब तक हमारा कहना सही कैसे होगा? पुत्र - जैसा देखा, जाना और सुना, वैसा कह दिया। बस छुट्टी। पिता - नहीं ! हमने किसी अज्ञानी से सुन लिया कि हिंसा में धर्म होता है, तो क्या हिंसा में धर्म मान लेना सत्य हो जायेगा ? पुत्र - वाह ! हिंसा में धर्म बताना सत्य कैसे होगा ? पिता - इसीलिए तो कहते हैं कि सत्य बोलने के पहिले सत्य जानना आवश्यक है। पुत्र - किसी दूसरे की वस्तु को चुरा लेना ही चोरी है ? पिता - हाँ, किसी की पड़ी हुई, भूली हुई, रखी हुई वस्तु को बिना उसकी आज्ञा लिए उठा लेना या उठाकर किसी को दे देना तो चोरी है ही, किन्तु यदि परवस्तु का ग्रहण भी न हो परन्तु ग्रहण करने का भाव ही हो, तो वह भाव भी चोरी है। पुत्र - ठीक है, पर यह कुशील क्या बला है ? लोग कहते हैं कि पराई माँ-बहिन को बुरी निगाह से देखना कुशील है। बुरी निगाह क्या होती है? पिता - विषय-वासना ही तो बुरी निगाह है। इससे अधिक तुम अभी समझ नहीं सकते। पुत्र - अनाप-शनाप रुपया-पैसा जोड़ना ही परिग्रह है न ? पिता - रुपया-पैसा मकान आदि जोड़ना तो परिग्रह है ही, पर असल में तो उनके जोड़ने का भाव तथा उनके प्रति राग रखना और उन्हें अपना मानना परिग्रह है। इसप्रकार की उल्टी मान्यता को मिथ्यात्व कहते हैं। पुत्र - हैं ! मिथ्यात्व परिग्रह है? पिता - हाँ ! हाँ !! चौबीस प्रकार के परिग्रहों में सबसे पहिला नम्बर तो उसका ही आता है। फिर क्रोध, मान, माया और लोभ आदि कषायों का। पुत्र - तो क्या कषायें भी परिग्रह हैं ? पिता - हाँ ! हाँ !! हैं ही। कषायें हिंसा भी हैं और परिग्रह भी। वास्तव में तो सब पापों की जड़ मिथ्यात्व और कषायें ही हैं। पुत्र - इसका मतलब तो यह हुआ कि पापों से बचने के लिए पहिले मिथ्यात्व और कषायें छोड़ना चाहिए? पिता - तुम बहुत समझदार हो, सच्ची बात तुम्हारी समझ में बहुत जल्दी आ गई। जो जीव को बुरे रास्ते में डाल दे, उसी को तो पाप कहते हैं। एक तरह से दु:ख का कारण बुरा कार्य ही पाप है। मिथ्यात्व और कषायें बुरे काम हैं, अत: पाप हैं।
SR No.008341
Book TitleBalbodh 1 2 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size144 KB
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