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सारा दिन तो धूल-माटी में अटका रहता हूँ, कहीं किसी फूल-पत्ती में प्रकृति का सच्चा सौन्दर्य नजर आता है व उसकी सम्भाल में लग जाता हूँ, उसकी एक-एक शाख को सम्भालता हूँ, एक-एक पत्ती को सहेजता हूँ और कभी घर के साधारण से सामान पर चढ़ी धूल की महीन-सी पर्त भी मुझे विचलित कर देती है और मानो मैं समर्पित ही हो जाना चाहता हूँ, अपने घर में से धूल के उन्मूलन के लिए; परन्तु परमशुद्ध, अबंधस्वभावी आत्मा पर अनादि से चढ़ रही कर्मरज का मुझे विचार ही नहीं आता, वह कभी मेरी चिन्ता व चिन्तन का विषय ही नहीं बनती।
जिसप्रकार हम अवकाश के दिनों में परिवार सहित घूमने के लिए बम्बई जाते हैं, तब जाने से पूर्व ही इन्तजाम कर लेते हैं कि बम्बई में जाकर कहाँ ठहरेंगे, क्या खायेंगे, कहाँ-कहाँ घूमेंगे, किस-किससे मिलेंगे इत्यादि व इन सब कामों के लिए आवश्यक सामग्री का इन्तजाम करके चलते हैं। महीनों पूर्व ट्रेन का आरक्षण करवाते हैं व इच्छित तारीख को आरक्षण न मिलने पर अपना कार्यक्रम कुछ दिन आगे-पीछे भी कर लेते हैं। फिर सुनिश्चित समय पर तैयारियों के साथ बम्बई के लिए प्रस्थान करते हैं व वहाँ पहुँचने पर भी सर्वप्रथम जीवन-जरूरत की सभी आवश्यक सामग्री के इन्तजाम में जुट जाते हैं, जैसे खाना-पीना, नहाना-धोना, खेलना-कूदना इत्यादि।
सुविधापूर्वक निराकुल रहकर सभी आवश्यक क्रियाओं से निवृत्त होकर घूमने-फिरने निकलते हैं, एक-एक स्थान पर जाना चाहते हैं व हर क्षण हर पल का भरपूर आनंद लेना चाहते हैं; क्योंकि हम आखिर निकले ही प्लेजर ट्रिप पर हैं, आनन्द मनाने की यात्रा पर।
पर यदि हमें अचानक पता लगे कि मुझे केन्सर हो गया है व इलाज के लिए बम्बई जाना होगा, तब भी क्या हम यही सब कुछ करेंगे, तब भी रिजर्वेशन न मिलने पर कार्यक्रम कुछ दिनों के लिए टाल देंगे? नहीं ! यात्रा में चाहे कुछ भी क्यों न भुगतना पड़े, कितना ही कष्ट क्यों
अन्तर्द्वन्द/३१
न उठाना पड़े, तुरंत ही बम्बई जाने का उपक्रम करेंगे । घर पर चाहे कितने ही महत्त्वपूर्ण कार्य लम्बित पड़े हों, पर उनके पूरे होने का इन्तजार नहीं करेंगे? यह विचार भी नहीं करेंगे कि साथ कौन जावेगा ? भाई के चले बिना तो काम चल नहीं सकता और वह तो कुछ दिन अत्यन्त व्यस्त है; क्योंकि सीजन चल रहा है या पत्नी तो अभी निकल ही नहीं सकती; क्योंकि बच्चे की एस.एस.सी. की परीक्षायें हैं।
ये नहीं तो वह सही, वह नहीं तो कोई और सही; यदि कोई भी नहीं तो हम ही सही, पर हम तुरन्त ही बम्बई के लिए चल पड़ते हैं। निकलने से पहले यह भी नहीं सोचते कि ठहरेंगे कहाँ ?
जो होगा सो देखा जावेगा।
बम्बई पहुँच जाने पर भी ठहरने का इन्तजाम करने से पहले, स्टेशन से ही डॉक्टर को फोन करके अपाइन्टमेंट ले लेना चाहते हैं कि कहीं देर न हो जावे । यदि डॉक्टर तुरंत ही बुला लेवे तो हम यह नहीं कहते कि अभी तो कैसे आ सकता हूँ, अभी तो ठहरने का इन्तजाम करना है, खाने-पीने का इन्तजाम करना है और फिर मैं कोई अकेला थोड़े ही हूँ, अन्य लोग भी तो मेरे साथ आये हैं, वे भी सिर्फ मेरे लिए ही, अपने-अपने महत्त्वपूर्ण काम छोड़कर । उन सबकी जिम्मेदारी भी तो मेरे ऊपर ही है; अत: उन सबकी, सब आवश्यकताओं का इन्तजाम करके फिर आऊँगा समय मिलने पर ।
बल्कि तुरन्त सभी को स्टेशन पर ही छोड़कर हम डॉक्टर के पास पहुँचते हैं और यदि डॉक्टर कहे तो तुरंत ही अस्पताल में भर्ती भी हो जाते हैं, सभी साथ आनेवालों को उनके हाल पर छोड़कर; और तो और स्वयं अपने आपको को, उनकी जिम्मेदारी पर छोड़कर । तब हमें विचार भी नहीं आता कि मैं भर्ती हो जाऊँगा तो उन सबका क्या होगा ? अब इतनी दूर आये हैं तो बम्बई भी घुमानी ही होगी, नहीं तो वे क्या सोचेंगे?
हम स्वयं तो किसी का विचार करते ही नहीं, साथ आये अन्य लोग भी उसका बुरा नहीं मानते; क्योंकि वे सभी जानते हैं कि वे बम्बई क्यों
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