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ऐसे क्या पाप किए !
इस बात से भी यही सन्देश मिलता है कि पुण्यवान और धर्मात्मा व्यक्ति जहाँ भी जाएगा, उसे सम्मान तो मिलेगा ही, लोग उसे अपनाने, अपना बनाने में भी गौरवान्वित होंगे।
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आठवें लम्ब (अध्याय) का प्रारम्भ करते हुए ग्रन्थकार कहते हैं कि जैसे समुद्र के तट पर बैठ तटस्थभाव से लहरों का आनन्द लेनेवाले विवेकी तो जीवित रहते हैं, सुखी रहते हैं; परन्तु समुद्र के बीच गहरे पानी में गोते लगानेवाले जीवित नहीं रहते; वैसे ही अल्पराग करनेवाले तो सुखी रहते हैं; किन्तु अधिक अनुराग करनेवाले सुखी नहीं रहते।
इस नीति का विचार करनेवाले विवेकी जीवन्धरकुमार कनकमाला से विवाह करके उसके मोह में अधिक आसक्त नहीं हुए; फिर भी अपने सालों के स्नेह विशेष के वश में वहाँ बहुत समय तक रहे।
एकबार एक स्त्री द्वारा उन्हें अपने छोटे भाई नन्दाढ्य को कनकमाला के पितृगृह आयुधशाला में आने का समाचार मिला तो वे वहाँ दौड़े-दौड़े गए और वहाँ नन्दाढ्य को पाकर प्रसन्न हुए तथा उससे वहाँ आने का कारण जानना चाहा। उत्तर में नन्दाढ्य ने बताया कि 'काष्ठांगार ने आपको मार डालने का निश्चय किया है।' यह ज्ञात होते ही मैं भाभी गन्धर्वदत्ता के पास गया। वहाँ भाभी को प्रसन्नचित्त देख मुझे इस बात का आश्चर्य हुआ कि - आपकी मृत्यु का समाचार जानकर भी भाभी प्रसन्न हैं! आखिर क्यों ? पूछने पर पता चला कि उन्होंने अपनी विद्या के बल से यह सब पहले ही ज्ञात कर लिया है कि आप यक्षेन्द्र द्वारा सुरक्षित हैं और सुख-शान्ति से रह रहे हैं। मेरी आपसे मिलने की इच्छा जानकर उन्होंने ही यहाँ मुझे विद्याबल से आपके पास भेज दिया है। इसप्रकार जीवन्धरकुमार की छोटे भाई से भेंट हो गई। इसीप्रकार धीरे-धीरे चोर बनकर आए मित्रों द्वारा आश्रम में रह रही माँ की कुशलता का समाचार भी जीवन्धरकुमार को मिल गया। यह सब प्रसंग बताते हुए ग्रन्थकार ने
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क्षत्रचूड़ामणि नीतियों और वैराग्य से भरपूर कृति
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हुए
इस आठवें अध्याय के अन्त में सागरदत्त वैश्य की पुत्री विमला से जीवन्धरकुमार के विवाह की चर्चा भी खुलकर की है।
इसके बाद नौंवे लम्ब (अध्याय) में ग्रन्थकार कहते हैं कि एकबार जीवन्धरकुमार के मुँहबोले बुद्धिषेण विदूषक ने उनसे मनोविवाद करते हुए चुनौती की भाषा में कहा कि पुरुषों में अन्तर्बाह्य व्यक्तित्व से प्रभावित एवं आकर्षित होनेवाली गुणानुरागिनी योग्य वर की अभिलाषी स्त्रियों के साथ विवाह करने में आपकी क्या विशेषता है ? हाँ, पुरुषवर्ग की छाया भी न सहनेवाली सुरमञ्जरी के साथ यदि आप विवाह करें तो ही आपका विशेष महत्त्व और सौभाग्य समझा जाएगा।
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विदूषक की चुनौती को सहर्ष स्वीकार करते हुए जीवन्धरकुमार यक्ष द्वारा प्रदत्त मन्त्र के द्वारा वृद्ध ब्राह्मण का वेष धारण कर सुरमञ्जरी के पास पहुँच गए।
सुन्दरी ने उस वृद्ध ब्राह्मण को भूखा समझ कर भोजन कराया । भोजन कर चुकने पर कुछ आराम कर वृद्ध ने मन्त्र के प्रभाव से अति मधुर गाना गाया, जिसे सुनकर सुरमञ्जरी उसे अधिक शक्तिशाली समझ कर बोली कि आप गाने के समान अन्य बातें भी जानते हैं क्या ? उसने उत्तर दिया कि हाँ, तब उस सुरमञ्जरी ने अपने इच्छित वर की प्राप्ति का उपाय पूछा। वृद्ध ने कहा कि कामदेव के मन्दिर में चलकर उसकी उपासना करो, तुम्हें इच्छित वर प्राप्त हो जाएगा।
तब सुरमञ्जरी उस वृद्ध की बात पर विश्वास कर कामदेव के मन्दिर और प्रार्थना करने लगी कि हे देव ! आपके प्रसाद से मुझे पति के रूप में जीवन्धरकुमार की प्राप्ति हो । जीवन्धरकुमार का मित्र बुद्धिषेण नामक विदूषक पहले से ही कामदेव के मन्दिर में आकर छिप गया था। उस विदूषक ने कहा कि - तुझे वर प्राप्त हो चुका है, वे तेरे साथ ही हैं। भोली-भाली सुरमञ्जरी ने भी उस विदूषक के वचन को कामदेव का ही वचन मान लिया।