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क्षत्रचूडामणि नीतियों और वैराग्य से भरपर कति
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ऐसे क्या पाप किए ! यह घटना यह सन्देश देती है कि - कैसा भी संकट क्यों न आए, अपने पूज्य माता-पिता और गुरुजन की इच्छा के विरुद्ध आचरण नहीं करना चाहिए तथा दीन-दुःखियों के प्रति करुणा, प्राणिमात्र की रक्षा और परोपकार की भावना रखनी चाहिए तथा शत्रु के प्रति साम्यभाव रखना चाहिए। अनुकूल-प्रतिकूल प्रसंगों में अपने पूर्वोपार्जित पुण्य-पाप का फल विचारकर दूसरों को दोष नहीं देना चाहिए।
कथानक को आगे बढ़ाते हुए ग्रन्थकार कहते हैं कि -
जीवन्धरकुमार चन्द्रोदय पर्वत से घूमते हुए एक वन में आए। वहाँ चारों ओर लगी हुई दावाग्नि से जलते हुए हाथियों को देख दयार्द्र हो उन्होंने सदय हृदय से हाथियों को बचाने की इच्छा की। तदनुसार मेघवृष्टि हुई और दावाग्नि बुझने से उन हाथियों की रक्षा हुई।
वहाँ से प्रस्थान कर अनेक तीर्थस्थानों की वन्दना करते हुए वे चन्द्राभा नगरी में पहुँचे। वहाँ के राजा धनमित्र की सुपुत्री पद्मा को साँप ने काट लिया था। जीवन्धरकुमार ने अपने दूसरे मन्त्र के प्रभाव से उसे तत्काल जीवित कर दिया। तब राजा ने बहुत सम्मान कर आधा राज्य देकर अपनी उस पद्मा नामक कन्या का उनके साथ विवाह कर दिया।
इसप्रकार जीवन्धरकुमार ने यक्षेन्द्र से प्राप्त मन्त्र शक्तियों का सदुपयोग करके परोपकार का कार्य ही किया।
यह घटना हमें यह सन्देश देती है कि पुण्योदय से प्राप्त अन्तरंगबहिरंग वैभव का अपने भोगों की प्राप्ति में दुरुपयोग न करके परोपकार में ही उसका सदुपयोग करना चाहिए।
छठवें लम्ब (अध्याय) में कथानक को आगे बढ़ाते हुए कहा गया है कि - जीवन्धरकुमार कुछ दिन चन्द्राभा नगरी में रहने के बाद वहाँ से प्रस्थान कर मार्ग में आए अनेक तीर्थस्थानों की वन्दना करते हुए एक तपस्वियों के आश्रम में पहुँचे। वहाँ उन्होंने तपस्वियों को मिथ्यातप करते
देख उन्हें सत्पात्र जानकर जिनेन्द्रप्रणीत धर्मोपदेश द्वारा यथार्थ तप का स्वरूप समझाकर सन्मार्ग में लगाया।
इस कथानक द्वारा ग्रन्थकार यह सन्देश देना चाहते हैं कि - हम जहाँ भी जाए, अन्य विकथा करने की अपेक्षा धर्मचर्चा ही करें तथा उन्मार्ग में उलझे मानवों को सन्मार्ग में लगाने का सत्कार्य ही करें।
जीवन्धरकुमार उन तपस्वियों के आश्रम से प्रस्थानकर दक्षिण देश के उस सहस्रकूट चैत्यालय में पहुँचे, जिस चैत्यालय के किवाड़ बहुत समय से बन्द थे। ___ इन बन्द किवाड़ों के सम्बन्ध में वहाँ के ज्योतिषियों द्वारा की गई भविष्यवाणी के अनुसार यह दन्तकथा प्रचलित थी कि - जिस पुण्यात्मा पुरुष के निमित्त से ये बन्द किवाड़ खुलेंगे, वही सेठ सुभद्र की पुत्री क्षेमश्री का पति होगा । एतदर्थ वहाँ सेठ सुभद्र ने अपने गुणभद्र नामक नौकर को बैठा रखा था।
यह एक सुखद संयोग ही था कि वे बन्द किवाड़ जीवन्धरकुमार के आते ही खुल गए। ज्यों ही नौकर ने यह देखा कि जीवन्धरकुमार के निमित्त से किवाड़ खुल गए तो वह खुशी से नाच उठा और यह खुशखबरी अपने स्वामी को देने के लिए जाने को तत्पर हुआ ही था कि जीवन्धरकुमार ने उससे पूछा - तुम कौन हो और अचानक इतने हर्षित क्यों हो रहे हो? इस प्रश्न के उत्तर में गुणभद्र ने अपना पूरा परिचय देते हुए वह प्रचलित दन्तकथा विस्तार से जीवन्धरकुमार को सुना दी और स्वामी के पास जाकर जीवन्धरकुमार के शुभागमन का सारा समाचार उनको सुनाया।
सेठ सुभद्र शीघ्र ही उस चैत्यालय में आया और जीवन्धरकुमार का भावभीना स्वागत कर अपने घर ले गया। कुछ समय बाद उसने शुभमुहूर्त में अपनी पुत्री क्षेमश्री का विवाह जीवन्धरकुमार से कर दिया।
इस प्रकरण से यह सन्देश मिलता है कि पुण्योदय के प्रभाव से लोक में कैसी-कैसी असम्भव-सी लगनेवाली वस्तुएँ भी सहज
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