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ऐसे क्या पाप किए ! की रक्षा हेतु अपने पुराने दिनों को यादकर गर्व से कहने लगता, “यह तो दिनों का फेर है वर्ना हम भी किसी लखपती से कम नहीं थे।"
उसके कहे अनुसार - वह पहले बहुत सम्पन्न तो था ही, उसकी न केवल अपने गाँव में बल्कि आस-पास के अन्य गाँवों में भी अच्छी प्रतिष्ठा थी। परन्तु जब दुर्दिन आये, पुराना पुण्य क्षीण हुआ, अबतक पुण्य के फल में मस्त रहकर नया कुछ सत्कर्म नहीं किया तो चारों ओर से एक साथ विपत्तियों से तो घिरना ही था, सो घिर गया। जो अबतक सुख के साधन थे, वे ही दुःख दरिद्रता के कारण बन गये।
वह जिस गाँव में रहता था उस गाँव में उसकी खूब खेती थी, सारे गाँव में उसके बाप-दादा के जमाने से साहूकारी फैली थी। सब सुख के साधन सुलभ थे; किन्तु दुर्दिन आते ही वे कर्जदार ही विद्रोही हो गये और नकाब ओढ़कर डाकू बनकर लूटने-पीटने लगे। उन डाकू-लुटेरों के भय से भयाक्रान्त होकर सब कुछ छोड़कर रातोंरात शहर की ओर भागना पड़ा। तभी से उसके दुर्भाग्य का सिलसिला शुरु हो गया था। ___ एकमात्र जीवन का सहारा २२ वर्षीय बेटा तपेदिक से ग्रस्त हुआ
और २४ वर्ष की उम्र में ही दिवंगत हो गया। उस पर एक दुःख का नया पहाड़ और टूट पड़ा। मानसिक तनाव और जरूरत से ज्यादह श्रम के कारण वह स्वयं बीमार रहने लगा, पत्नी भी बीमार और चिड़चिड़ी हो गई। उन दोनों में धार्मिक दृष्टि से परस्पर में वैचारिक मतभेद तो थे ही, एक दूसरे पर दोषारोपण करने से गृह कलह भी होने लगी। उनके मात्र एक बेटा और चार बेटियाँ थीं। बेटे के असमय में दिवंगत होने से वह बहुत निराश हो गया था। बेचारी चारों बेटियाँ इन सब परिस्थितियों के कारण दीन-दुःखी और भीगी बिल्ली की भाँति सहमी-सहमी रहती हुई समय बिता रही थीं। ___चारों बेटियाँ क्रमशः १८ से २४ वर्ष की उम्र पार कर यौवन की ओर बढ़ रही थीं। लक्ष्मीनन्दन को उनके शादी-ब्याह का विकल्प सताने लगा था। उस समय उसकी समझ में यह नहीं आ सकता था कि उनकी
ऐसे क्या पाप किए! चिन्ता की जरूरत उसे नहीं करना चाहिए; क्योंकि उनका भी अपनाअपना भाग्य है। उनके भी पहले यहीं/कहीं उनके वर पैदा हो गये हैं, जो समय आने पर स्वयं माँगकर ले जायेंगे, बाद में हुआ भी यही। लड़कियाँ सुन्दर थीं, सुशील थीं, इस कारण लड़के वालों की ओर से स्वयं शादी के प्रस्ताव आ गये और सुयोग्य वरों द्वारा वे वरण कर ली गईं; परन्तु तत्त्वज्ञान के अभाव में वह तब तक निश्चिन्त नहीं हो सका था जब तक उनके विवाह नहीं हो गये। ___ अपनी प्रतिकूल परिस्थितियों से घबड़ा कर वह देवी-देवताओं और मंत्र-तंत्रवादियों तथा ज्योतिषियों के चक्कर काटने लगा था। जो जैसा बताता तदनुसार गृहीत मिथ्यात्व के क्रिया-कलाप करने लगा। गरीबी में गीले आटे की कहावत उस पर चरितार्थ हुई। कमाई का बहुभाग देवीदेवताओं, मंत्र-तंत्रवादियों की भेंट पूजा-पत्री में चढ़ने लगा। उसकी गरीबी और बीमारी के कारण सहानुभूति दिखाने और सहयोग करने के बहाने चुस्त-चालाक लोग उन युवा लड़कियों से घंटों गप्पे लड़ाने आ बैठते और अपनी भावनाओं को कलुषित करते रहते। अड़ौसी-पड़ौसी बगलें झाँकते और उन पर हँसते तथा व्यंगबाण छोड़ते।
मैं संयोग से उनका सर्वाधिक निकट का पड़ौसी था और प्रवचनकार पण्डित भी। पड़ौसी का धर्म निभाने के नाते मैं उन्हें मंत्र-तंत्रवादी और उन आवारा लोगों पर लगाम लगाने की बहुत सोचता; परन्तु “मियाँ बीबी राजी तो क्या करे काजी" की परिस्थिति में मैं कुछ भी नहीं कर सकता था।
देवयोग से उनकी पत्नी मेरी धर्मसभा की दैनिक श्रोता थी। इस कारण उसे अपने पति की वे अज्ञानजनित मिथ्या क्रिया-कलाप बिल्कुल पसन्द नहीं थे। यदा-कदा दोनों ही अपना-अपना दुःखड़ा रोते मेरे पास
आ जाते और लक्ष्मीनन्दन आँखों से आँसू टपकाता हुआ कहता - 'पण्डितजी हमने पूर्वजन्म में ऐसे क्या पाप किए, जिनका यह फल हमें मिल रहा है?'
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