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ऐसे क्या पाप किए! “काठियावाड़ देशस्थ सोनगढ़ ग्राम के सुप्रसिद्ध अध्यात्म-योगी कानजी स्वामी के उस महत् उपकार को कदापि नहीं भुला सकते- जो कि उन्होंने अपनी अद्वितीय प्रतिभा द्वारा भौतिक युग की अन्धकारमय जगती पर विलुप्तप्रायः हो जाने वाली अध्यात्म-धारा को पुनः नवजीवन प्रदान किया है।"
क्षुल्लक श्री चिदानन्दजी महाराज ने लिखा है - "जब मैं सोनगढ़ पहुँचा और चार मास के स्थान पर चौदह मास वहाँ रहा, वहाँ मैंने स्वामीजी की धर्मदेशना श्रवण की और वहाँ का अपूर्व शान्त वातावरण देखा तो जो आनन्द आया उसको मैं प्रगट करने में असमर्थ हूँ। यही कारण है कि जो वहाँ का वातावरण एक बार अवलोकन कर लेता है वह दूसरे वक्त जाये बिना नहीं रह सकता।...
जब स्वामीजी से निश्चय-व्यवहार, निमित्त-उपादान, कर्ता-कर्म, निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध के विषय में सुना व चौदह माह की अवधि में जो अनुभव किया तो जीवन की दिशा ही बदल गई। जिनेन्द्र-पूजन, भक्ति दान, स्वाध्याय आदि की प्रवृत्ति भी उनमें ही देखी जाती है। और यह सब स्वामीजी के निश्चय-व्यवहार की सन्धिपूर्वक उपदेश करने की शैली का प्रतीक हैं।"
क्षुल्लक श्री सुरत्नसागरजी लिखते हैं :- “स्वामीजी ने जो जैनधर्म का प्रकाश किया वह किसी ने नहीं किया। जब समाज अज्ञान-अंधकार में डूबा हुआ था, क्रियाकाण्ड में धर्म मान रहा था, प्रवचनों में क्रियाकाण्ड-कथा-कहानी ही चलते थे; स्वामीजी ने जैनतत्त्व का उद्घाटन किया, आत्मा के धर्म के वास्तविक स्वरूप को बताया। उनका यह उपकार कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। १. सन्मति संदेश, वर्ष ७, अंक ५, पृष्ठ २७ १. सन्मति संदेश, वर्ष ७, अंक ५, पृष्ठ ४९
बीसवीं सदी का सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्व
स्व. पण्डित श्री चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ, जयपुर ने लिखा है :- “इसमें कोई शक नहीं कि कानजी स्वामी के उदय से अनेक अंशों में क्रान्ति उत्पन्न हुई है। पुराना पोपडम खत्म हो रहा है और लोगों को नई दिशा मिल रही है। यह मानना गलत है कि वे एकान्त निश्चय के पोषक हैं। हम सोनगढ़ में एवं सर्वत्र फैले हुए उनके अनुयायियों में निश्चय तथा व्यवहार का सन्तुलन देख रहे हैं। सौराष्ट्र में अनेकों नवीन मन्दिरों का निर्माण स्पष्ट बतलाते हैं कि वे व्यवहार का अपलाप नहीं करते। ये भगवान् कुन्दकुन्द के सच्चे अनुयायी हैं। जो उनकी आलोचना करते हैं वे आपे में नहीं हैं व उन्होंने न निश्चय को समझा है न व्यवहार को और सच तो यह है कि उन्होंने जैन शास्त्रों का हार्द ही नहीं समझा। __ पण्डित जगन्मोहनलालजी शास्त्री, कटनी ने लिखा है :- "जब से श्री कानजी स्वामी ने भगवान कुन्दकुन्दाचार्य के समयसार आदि अध्यात्म ग्रन्थों का परिशीलन कर जैन धर्म का यथार्थ मर्म समझा और अपने अनुयायी हजारों भाई-बहिनों को समझाया तब से दि. जैन समाज की प्रगति में एक नया मोड़ आया है। स्वामीजी ने अपने जीवन में वह कार्य किया है जो आज सहस्रों वर्षों से जैन साधकों द्वारा सम्पन्न नहीं हो सका।..... सौराष्ट्र में २० दिगम्बर जैन मन्दिरों का निर्माण, उनकी पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठाएँ, समस्त दिगम्बर जैन तीर्थों की सहस्रों व्यक्तियों के संघ सहित वन्दना लाखों रुपया दि. तीर्थरक्षा में चन्दा देना तथा उसकी पूर्ति का संकल्प - ये सब उनकी कट्टर दिगम्बरता के दृढ़तम प्रमाण हैं।
उनके अनुयायी अधिकांश व्यक्ति रात्रि भोजन नहीं करते, कन्दमूल भक्षण नहीं करते, द्विदल नहीं खाते, व्रतरूप प्रतिज्ञाबद्ध न होते हुए इन श्रावकीय नियमों का पालन करते हैं; जबकि पुराने दिगम्बरों में यह परम्परा टूटती जा रही है। मेरी स्वयं की दृष्टि में यह निर्णय है कि स्वामीजी का तत्त्वज्ञान यथार्थ है'.....।
१. आगमपथ, मई १९७६, पृष्ठ ५२ २. आगमपथ, मई १९७६, पृष्ठ ५२
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