SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८८ विभिन्न कवियों के भजन आध्यात्मिक भजन संग्रह ३३. चरणन चिन्ह चितारि चित्त में (राग भैरवी) चरणन चिन्ह चितारि चित्त में वन्दन जिन चोबीस करूँ रे ।।टेर ।। रिषभ, वृषभ गज अजितनाथ के संभव के पद वाज सरूँ। अभिनन्दन कपि, कोक सुमति के पदम पदम प्रभु पायधरूँ।।१।। स्वस्ति सुपारस चन्द चन्द्र के पुष्पदन्त के पद मधरू । सुर तरु शीतल चरण कमल में श्रेयांश गैंडा वन करू ।।२।। भैंसा वास, वराह विमलपद अनन्तनाथ के सेही परूं । धर्मनाथ अंकुश शान्ति हिरन अज कुंथनाथ अरमीन धरूँ।।३।। कलश मल्लि कछ मुनिसुव्रत नमि कमल सतपत्र तरू । नेम शंख फनि पास, वीर हरि, लखि बुधजन आनन्द भरूं ।।४।। २४. चेतनजी तुम जोरत हो धन (राग भैरवी) चेतनजी तुम जोरत हो धन सो धन चलत नहीं तुम लार ।।टेर ।। जाकू आप जान पोषत हो सो तन जल के द्वैगें छार ।।१।। विषय भोग को सुख मानत हो, ताका फल है दुःख अपार । यह संसार वृक्ष सेमर को मान कह्यो हूँ कहत पुकार ।।२।। ३५. चेतन अखियाँ खोलो ना। (राग भैरवी) चेतन अखियाँ खोलो ना तेरे पीछे लागे चोर ।।टेर ।। मोहरूपी मद पान कर रे पड़े रहे बेसुद्धि । नैना मींचि सो रहे रे हित की खोई बुद्धि ।।१।। याहि दशा लख तेरी चेतन, लीनो इन्द्रिन घेर । लूटी गठरी ज्ञान की रे, अब क्यों कीनी देर ।।२।। फाँसी करमन डाल गलेरे नर्कन मांहि दे गेर । पड़े वहाँ दुख भोगने रे कहा करोगे फेर ।।३ ।। जागो चेतन चातुरां तुम दीज्यो निद्रा त्याग । ज्ञान खडग ल्यो हाथ में रे, इन्द्रिय ठग भग जाय ।।४ ।। उत्तम अवसर आ मिल्यो रे छांडो विषयन प्रीति । 'ज्योति' आतम हित करोरे, नहिं जाय अवसर बीति ।।५।। २६. घडी धन आज की येही सरे सब काज (राग भैरवी) घडी धन आज की येही सरे सब काज मो मन का। गये अघ दूर सब भज के लखा मुख आज जिनवरका ।।टेर ।। विपति नाशी सकल मेरी, भरे भंडार संपति का। सुधा के मेघहु वरषे लखा मुख आज जिनवर का ।।१।। भई परतीति यह मेरे सही हो देव देवन का। टूटी मिथ्यात्व की डोरी, लखा मुख आज जिनवर का ।।२।। विरद ऐसा सुना मैंने जगत के पार करने का। 'नवल' आनन्द हू पायो लखा मुख आदि जिनवरका ।।३।। ३७. मेटो विथा हमारी प्रभूजी (राग प्रभाती) मेटो विथा हमारी प्रभूजी मेटो विथा हमारी ।।टेर ।। मोह विषमज्वर आन सतायौ देत महा दुःखभारी । यो तो रोग मिटन को नाहीं, औषध बिना तिहारी ।।१।। तुम ही बैद धन्वन्तर कहिये, तुमही मूल पसारी। घट घट की प्रभु आपही जानो क्या जाने वैद्य अनारी ।।२।। तुम हकीम त्रिभुवनपति नायक, पाऊँ टहल तुम्हारी। संकट हरण चरण जिनजी का नैनसुख शर्ण तिहारी ।।३।। sa kabata -
SR No.008336
Book TitleAdhyatmik Bhajan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size392 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy