________________
अनुक्रमणिका
१९३ १९४
१७७
१९५
१९७
७. विभिन्न कवियों के भजन
१७२-२१९ • पलकन से मग झारूँ • थांकी शान्ति छवि मन बसगई जी १७५
किस विधि किये करम चकचूर नहिं गोरो नहिं कारो चेतन • इस विधि कीने करम चकचूर १७६
जगत गुरु कब निज आतम ध्याऊँ • मुक्ति की आशा लगी . थारा तो भला की जिया याही ज्ञान
१७८ भजन बिन योंही जनम गमायो• बिदा होने के बाजे बजने लगे
सुनरे गँवार, नितके लबार, तेरे घट • मानोजी चेतनजी मोरी बात . जब निज ज्ञान कला घट आवें चिदानंद भूलि रह्यो सुधिसारी • निज घर नाहिं पिछान्यारे अपना कोई नहीं है रे. चेतन काहे को पछतावता छांड दे अभिमान जियरा छांड दे अभिमान रे नैना क्यों नहिं खोलै यह मजा हमको मिला पुद्गल की यारी में इस नगरी में किस विधि रहना अरे मन बनिया वान न छोड़े • अरे निज बतियाँ क्यों नहीं जानै १८४
हो प्यारा चेतन अब तो सँभारो ज्ञान गुण धारो रे • हो जागो जी चेतन अबतो सवेरो.कहाँ चढ़ रहो मान शिखापैं १८५
थारो मुख चन्द्रमा देखत भ्रम तम भाग्यो कहाँ परदेशी को पतियारो • तनका तनक भरोसा नाहीं चेतन भोरों पर तैं उरझ रह्यो रे आदम जन्म खोया तैं नाहक • ऐसी चोसर जो नर खेलै चरणन चिन्ह चितारि चित्त में चेतनजी तुम जोरत हो धन १८८ चेतन अखियाँ खोलो ना
घड़ी धन आज की येही सरे सब काज • मेटो विथा हमारी प्रभूजी १८९ • मैं तो आऊँ तुम दरशनवा . अरे मन पापनसों नित डरिये १९० • कबै निर्ग्रन्थ स्वरूप धरूँगा
a
विभिन्न कवियों की भजन अनुक्रमणिका
भजन सम नहीं काज दूजौ. चेतै छै तो आछी बेल्यां दर्शन को उमावो म्हारे लागि रहयो
उजरो पथ है शिव ओरी को . होजी मद छक मानीजी,थे समझो आतम ज्ञानीजी
कुमता के संग जाय • प्रभु देख मगन भया मेरा मनुवा तौरी सी निधि दे, जिनन्द वा या ऋतु धनि मुनिराई करत तप आयु रही अब थोड़ी कहाँ करै ऐसो नर भव पाय गंवायो • कैसा ध्यान धरा है जोगी . विश्व का कोलाहल कर दूर बनूँ मैं
झूठे झगड़े के झूले पर • चेतन की सत्ता में दुख का क्या काम है
चेतन निधी अपनी है, ज्ञायक निधी अपनी है फँसेगा जो दुनिया में वह ख्वार होगा दुनिया में देखो सैकड़ों आये चले गये
तू क्या उम्र की शाख पर सो रहा है • जब हंस तेरे तनका कहीं उड़के जायेगा
कर सकल विभाव अभाव मिटादो बिकलपता मन की अनारी जिया तुझको यह भी खबर है तुम्हारा चंद मुख निरखे सुपद रुचि मुझको आई है
अरे यह क्या किया नादान तेरी क्या समझपे पड़.... . परदेशिया में कौन चलेगा तेरे लार
हाय इन भोगों ने क्या रंग दिखाया मुझको
बिना सम्यक्त के चेतन जनम बिरथा गँवाता है • आपमें जबतक कि कोई आपको पाता नहीं विषय भोग में तूने अय जिया कैसे जीको अपने लगा दिया
जैसा जो करता है भरता है यहीं देख लिया . अय महावीर जमाने का हितंकर तू है
१९९
२००
२०१
१८७
२०२ २०३
२०४
(८७)