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आध्यात्मिक भजन संग्रह पण्डित दौलतरामजी के भजनों के कठिन शब्दों
भजन नं. १४ के अर्थ
रावरो - आपका, पर पद चाह - पुद्गल सम्बन्धी चाहक, दाह भजन नं.१
गद नासन - दाह रूपी रोग नाश करने के लिये, अवाची - जिसका ___ अरि - मोहनीय कर्म, रज - ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी कर्म, रहस
वर्णन न हो सके। - अन्तराय कर्म, नग में - अशोक वृक्ष, क्षम - समर्थ ।
भजन नं. १८ भजन नं. २
पचासी - अघातिया कर्मों की प्रकृतियाँ, अनंग मातङ्ग - जन्म, जरा, मृतगद - जन्म जरा मरण रूपी रोग।
कामदेवरूपी हस्ती को, प्रबलंग हरि - बलवान सिंह, पल - माँस व
रुधिर, कल में - शरीर में, अलक - केश। भजन नं.३ भव मरू थल मग में - संसार रूपी मारवाड़ देश के मार्ग में, कानन
भजन नं. १९
सरोरूह सूर - भव्य रूपी कमलों को सूर्य, दुरित दोष - दोष - बन, महादुठ - महा दुष्ट । भजन नं.६
रहित, विगताकुल - आकुलता रहित, सची कन्ता - इन्द्र, निज गुण अपन पो - अपना पन।
मुन - अपने गुणों का मनन करके, परगर उगलता - विभाव रूपी विष भजन नं. ९
को उगलने वाले, तौल बिन - अपरिमित, रांक - रंक, नाचीज, नाक पुरन्दर शोभ - इन्द्र की शोभा, शूल - त्रिशूल, दुकूल - वस्त्र,
गंता - स्वर्ग गया। लंक - कमर ।
भजन नं. २१ भजन नं. १२
___अंक - गोद में, अकोह छोह बिन - क्रोध क्षोभ रहित, सेय - नासान्यस्त नयन - नासिका पर लगाई है दृष्टि जिसने, भूहलय -
सेवा, अमेय - अपरिमाण, भवजलधि - भव समुद्र की। भोहें नहीं हिलती हैं, लाह की - लाभ की।
भजन नं. २२ भजन नं.१३
त्रिधरे - तीन धरे, आत पत्र - छत्र, कुंद कुसुम सम - कुंद के फूल जिनपाला - सम्यग्दृष्टि से लगाकर बारहवें गुणस्थान तक जिन
के समान, वर्ण विगत - अनक्षरी, तूर्य - बाजे । संज्ञा है उनका रक्षक, बाला - स्त्री, बैनों में - वचनों में, तुम धुनि घन
भजन नं. २३ - आपकी वाणी रूपी मेघ, परचहन-दहनहर - परपदार्थों की चाह
नव दुगुन - अठारह बार की, भू - पृथ्वी काय, ज्वलन - रूपी अग्नि को बुझाने वाला है, चिदंक - चेतना स्वरूप, इन्द्रिय सुख,
अग्निकाय। दुख - इन्द्रिय सुख दुख जड़ का स्पर्श करते हैं, मेरा नहीं, मुझे सुख .Kapu...
भजन नं. २८ दुःख नहीं होते, धवल - विशुद्ध निर्मल ।
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विधी झारन - निर्जरा, सुधांबु स्यात्पदांक गाह - स्यादवाद रूपी