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आध्यात्मिक भजन संग्रह
पापाचार किया धन संग्रह, भोगत सब घर भेला । पाप के भागी, कोई नहीं है, भोगत दुःख अकेला ।।४ ।। तन धन यौवन विनस जात ज्यू, इन्द्र जाल का खेला । करना हो सो करले आगे, आयु अन्त की बेला ।।५ ।। सम्यक् से कर दूर रागादि रह जा समय अकेला । 'चुन्नी' मिटे अरिहन्त शरण से, जनम मरण का फेरा ।। ६ ।। ८१. क्यों चढ़ रह्यो मान सिखापै
क्यों चढ़ रह्यो मान सिखापै जासो सुरचक्री नहीं धापै ।
क्यों चढ़ रह्यो मान सिखापै ॥ टेक ॥।
पुण्य उदय दोय धाम कर-कर रह्यो लांपालोपै । दो अंगुली की लकड़ी लेकर, जम्बुद्वीप को नापै ।। क्यों चढ़ रह्यो मान सिखापै ।। १ ।।
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रावण सरिसा दुरगति पहुँचा, इन्द्रादिक जासो कांपै । भरत सरिसा का मानखण्ड होय, नवनिधि छी घर जाकै।।
क्यों चढ़ रह्यो मान सिखापै ।। १ ।।
इन विषयन का देख तमासा, अब क्यों नैना ढांकै । 'बैणी' जी मान पहाड़ से उतरया निजपुर में वह थांपै ।। क्यों चढ़ रह्यो मान सिखापै ॥ १ ॥
८२. ऐसे मुनिवर देखें वन में
ऐसे मुनिवर देखें वन में, जाके राग दोष नहिं मन में ।। टेक ॥। ग्रीष्म ऋतु शिखर के ऊपर मगन रहे ध्यानन में ।। १ ।। चातुर्मास तरू तल ठाड़े बून्द सहे छिन २ में ।। २ ।। शीत मास दरिया के किनारे, धीरज धारे तन में ।। ३ ।। ऐसे गुरू को नितप्रति सेऊं देत ढोक चरणन में || ४ ||
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(१०६)
विभिन्न कवियों के भजन
८३. दरबार तुम्हारे आये हैं
दरबार तुम्हारे आये हैं, दरबार तुम्हारा मनहर है।
हम दर्शन कर हर्षाये हैं । । दरबार ||
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भक्ति करेंगे चित्त से तुम्हारी, तृप्ति भी होगी चाह हमारी।
भाव रहे नित उत्तम ऐसे, घट के पट में लाये हैं। । दरबार. ।। १ ।। जिसने चिन्तन किया तुम्हारा, मिला उसे सन्तोष सहारा ।
शरने जो भी आये हैं, निज आतम को लख पाये हैं । । दरबार. ।। २ ।। विनय यही है प्रभु हमारी, आतम की महके फुलवारी । अनुगामी हो तुम पद पावन, 'वृद्धि' चरण शिरनाये हैं। दरबार || ३ || ८४. मनहर तेरी मूरतियाँ, मस्त हुआ मन मेरा मनहर तेरी मूरतियाँ, मस्त हुआ मन मेरा ।
तेरा दर्श पाया, पाया, तेरा दर्श पाया ।। प्यारा प्यारा सिंहासन अति भा रहा, भा रहा ।
उस पर रूप अनूप तिहारा छा रहा, छा रहा ।। पद्मासन अति सोहे रे, नयना उमगे हैं मेरे । चित्त ललचाया पाया ।। तेरा दर्शन पाया ।। १ ।।
तव भक्ति से भव के दुख मिट जाते हैं, जाते हैं । पापी तक भी भव सागर तिर जाते हैं, जाते हैं ।। शिव पद वहीं पाये रे, शरणाऽगत में तेरी ।। जो जीव आया, पाया। । तेरा दर्श पाया. ।। २ ।। सांच कहूं खोई निधि मुझको मिल गई मिल गई । जिसको पाकर मन की कलियाँ खिल गई, खिल गई ।। आशा पूरी होगी रे, आश लगा के वृद्धि, तेरे द्वार आया, पाया ।। तेरा दर्श पाया. ॥ ३ ॥