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________________ समयसार कलश पद्यानुवाद अध्यात्मनवनीत उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।७५।। एक कहे ना जीव दूसरा कहे जीव है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ।।७।। एक कहे ना सूक्ष्म दूसरा कहे सूक्ष्म है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ।।७७।। एक कहे ना हेतु दूसरा कहे हेतु है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ।।७८।। एक कहे ना कार्य दूसरा कहे कार्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ।।७९।। एक कहे ना भाव दूसरा कहे भाव है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८।। एक कहे ना एक दूसरा कहे एक है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८।। एक कहे ना सान्त दूसरा कहे सान्त है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८२।। एक कहे ना नित्य दूसरा कहे नित्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८३।। एक कहे ना वाच्य दूसरा कहे वाच्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ।।८४।। नाना कहता एक दूसरा कहे अनाना, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है।।८५।। एक कहे ना चेत्य दूसरा कहे चेत्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ।।८६।। एक कहे ना दृश्य दूसरा कहे दृश्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं, उनको तो यह जीव सदा चैतन्यरूप है ।।८७।। एक कहे ना वेद्य दूसरा कहे वेद्य है, किन्तु यह तो उभयनयों का पक्षपात है। पक्षपात से रहित तत्ववेदी जो जन हैं,
SR No.008335
Book TitleAdhyatma Navneet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Ritual, & Vidhi
File Size333 KB
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