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अध्यात्मनवनीत
मैं ज्ञानानन्दस्वभावी हूँ मैं हूँ अपने में स्वयं पूर्ण,
___ पर की मुझ में कुछ गन्ध नहीं। मैं अरस अरूपी अस्पर्शी,
पर से कुछ भी संबंध नहीं।।१।। मैं रंग-राग से भिन्न,
भेद से भी मैं भिन्न निराला हूँ। मैं हूँ अखण्ड चैतन्यपिण्ड,
निज रस में रमने वाला हूँ।।२।। मैं ही मेरा कर्ता-धर्ता,
मुझ में पर का कुछ काम नहीं। मैं मुझ में रहने वाला हूँ,
पर में मेरा विश्राम नहीं ।।३।। मैं शुद्ध, बुद्ध, अविरुद्ध, एक,
पर-परिणति से अप्रभावी हूँ। आत्मानुभूति से प्राप्त तत्त्व,
मैं ज्ञानानन्द स्वभावी हूँ।।४।।