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पाठ ९
भगवान पार्श्वनाथ
कविवर पं. भूधरदासजी
(वि. संवत् १७५०–१८०६) वैराग्य रस से ओतप्रोत आध्यात्मिक पदों के प्रणेता प्राचीन जन कवियों में भूधरदासजी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनके पद, छन्द और कवित्त समस्त धार्मिक समाज में बड़े आदर से गाये जाते हैं।
आप आगरा के रहने वाले थे। आपका जन्म खण्डेलवाल जन जाति में हुआ था, जैसा कि जैन-शतक के अन्तिम छंद में आप स्वयं लिखते हैं -
प्रागरे में बाल बुद्धि, भूधर खण्डेलवाल ,
बालक के ख्याल सो कवित्त कर जाने हैं। ये हिन्दी और संस्कृत के अच्छे विद्वान थे। अब तक इनकी तीन रचनाएँ प्राप्त हो चुकी हैं जिनके नाम जैन-शतक, पार्श्वपुराण एवं पद-संग्रह हैं। जैन-शतक में करीब सौ विविध छन्द संगृहीत हैं, जो कि बड़े सरल एवं वैराग्योत्पादक हैं। ___ पार्श्वपुराण को तो हिन्दी के महाकाव्यों की कोटि में रखा जा सकता है। इसमें २१ वें तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथ के जीवन का वर्णन है। यह उत्कृष्ट कोटि के काव्योपादानों से युक्त तो है ही, साथ ही इसमें अनेक सैद्धान्तिक विषयों का भी रोचक वर्णन है।
आपके आध्यात्मिक पद तो अपनी लोकप्रियता, सरलता और कोमलकान्त पदावली के कारण जनमानस को आज भी उद्वेलित करते रहते हैं।
प्रस्तुत पाठ आपके द्वारा लिखित पार्श्वपुराण के आधार पर लिखा गया है।
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