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तीन लोक छात्र - गुरुजी! आज प्रवचन में सुना था कि कुन्दकुन्दाचार्य देव श्री
सीमन्धर भगवान के दर्शन करने विदेह क्षेत्र गये थे। यह विदेह
क्षेत्र कहाँ है ? अध्यापक – यह सारा विश्व तीन लोकों में बँटा हुआ है। जहाँ हम और तुम
रहते है, यह मध्यलोक है। इसमें असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं, वे एक दूसरे को घेरे हुए है। सबके मध्य जम्बूद्वीप है। उसके चारों ओर लवण समुद्र है, उसके चारों ओर धातकीखण्ड द्वीप है, उसके भी चारों ओर कालोदधि समुद्र है, फिर पुष्करवर द्वीप और
पुष्करवर समुद्र। इसी प्रकार असंख्यात द्वीप और समुद्र है। छात्र - हम और आप तो जम्बूद्वीप में रहते हैं, पर सीमन्धर भगवान कहाँ
रहते हैं ? अध्यापक – वे भी जम्बूद्वीप में ही रहते है। पर भाई! जम्बूद्वीप छोटा-सा थोड़े
ही है। यह तो एक लाख योजन विस्तार वाला है। इसके बीचोंबीच सुमेरु नामक गोल पर्वत है तथा इस गोल जम्बूद्वीप को विभाजित करने वाले छ: महापर्वत हैं, जो कि पूर्व से लेकर पश्चिम तक पड़े हुए हैं, जिनके नाम हैं –हिमवन, महाहिमवन,
निषध , नील , रुक्मि और शिखरी। छात्र - जब ये पूर्व से पश्चिम तक पड़े हुए हैं तो जम्बूद्वीप तो सात भागों
में बँट गया समझो। प्रध्यापक – हाँ! इन्हीं सात भागों को तो सात क्षेत्र कहते हैं, जिनके नाम हैं
भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत। छात्र - अब समझा कि जम्बूद्वीप का जो बीचवाला हिस्सा विदेह क्षेत्र हैं,
वहीं सीमंधर भगवान हैं। पर हम....... ? अध्यापक – उसके ही दक्षिण में जो भरत क्षेत्र है न, उसी में हम रहते हैं।
यहीं प्राचार्य कुन्दकुन्द जन्मे थे और वे विदेह क्षेत्र गये थे। छात्र - हम भी नहीं जा सकते क्या वहाँ ?
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