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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अध्यापक – जैन धर्म के अनुसार तो यह परिपाटी है कि पहले द्रव्यानुयोगानुसार सम्यग्दृष्टि हो, फिर चरणानुयोगानुसार व्रतादि धारण कर व्रती हो। अत: मुख्यरूप से तो निचली दशा में ही द्रव्यानुयोग कार्यकारी है। छात्र - पहिले तो प्रथमानुयोग का अभ्यास करना चाहिये ? अध्यापक – पहिले इसका अभ्यास करना चाहिये, फिर उसका, ऐसा नियम नहीं है। अपने परिणामों की अवस्था देखकर जिसके अभ्यास से अपनी धर्म में रुचि और प्रवृत्ति बढ़े, उसी का अभ्यास करना अथवा कभी इसका, कभी उसका, इस प्रकार फेर-बदल कर अभ्यास करना चाहिये। कई शास्त्रों में तो दो-तीन अनुयोगों की मिली पद्धति से भी कथन होता है। प्रश्न - سه १. अनुयोग किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार के हैं ? २. पं. टोडरमलजी के अनुयोगों का अभ्यासक्रम क्या है ? ३. द्रव्यानुयोग का अभ्यास क्यों आवश्यक हैं ? उसमें किस पद्धति से किस बात का वर्णन होता है ? ४. चरणानुयोग और करणानुयोग में क्या अन्तर हैं ? ५. प्रत्येक अनुयोग के कम से कम दो-दो ग्रन्थों के नाम लिखिए। ६. पं. टोडरमलजी के संबंध में अपने विचार व्यक्त कीजिए ? २२ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008325
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1997
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size719 KB
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