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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates स्थिति 'पर' से निरपेक्ष होने पर भी उसका कथन सापेक्ष होता हैं।” इस प्रकार बालक वर्धमान गहन सिद्धांतो को बालकों को भी सहज समझा देते थे। दुनियाँ ने उन्हें अपने रंग में रंगना चाहा पर आत्मा के रंग में सर्वाग सरागोर महावीर पर दुनिया का रंग न चढा। यौवन ने अपने प्रलोभनों के पांसे फेंके किन्तु उसके भी दांव खाली गए। माता-पिता की ममता ने उन्हें रोकना चाहा पर माँ के पासूओं की बाढ़ भी उन्हे बहा न सकी।। उन्के रूप-सौंदर्य एवं बल-विक्रम से प्रभावित हो अनेक राजागण अपनी अप्सराओं के सौंदर्य को लज्जित कर देने वाली कन्याओं की शादी उनसे करने के प्रस्ताव लेकर आए ,पर अनेक राजकन्याओं के हृदय में वास करने वाले महावीर का मन उन कन्याओं में न था। माता-पिता ने भी उनसे शादी करने का बहुत आग्रह किया, पर वे तो इन्द्रिय-निग्रह का निश्चय कर चूके थे। चारों ओर से उन्हें गृहस्थी के बंधन में बांधने के अनेक यत्न किए गए, पर वे प्रबंधस्वभावी आत्मा का आश्रय लेकर संसार के सर्व बंधनो से मुक्त होने का निश्चय कर चुके थे। जो मोह-बन्धन तोड़ चुका हो, उसे कौन बांध सकता है ? परिणामस्वरूप तीस वर्षीय भरे यौवन में मंगसिर कृष्ण दशमी के दिन उन्होंने घर-बार छोड़ा। नग्न दिगंबर हो निर्जन वन में आत्म-साधनारत हो गए। उनके तप ( दीक्षा) कल्याणक के शुभ-प्रसंग पर लौकांतिक देवो ने आकर विनयपूर्वक उनके इस कार्य की भक्तिपूर्वक प्रशंसा की। मुनिराज वर्धमान मौन रहते थे, किसी से वातचीत नहीं करते थे। निरंतर प्रात्मचिन्तन में ही लगे रहते थे। यहाँ तक की स्नान और दन्तधोवन के विकल्प से भी परे थे। शत्रु और मित्र में समभाव रखनेवाले मुनिराज महावीर गिरि-कन्दराओं में वास करते थे। शीत, ग्रीष्म, वर्षादि ऋतुओं के प्रचण्ड वेग से वे तनिक भी विचलित न होते थे। उनकी सौम्यमूर्ति, स्वाभाविक सरलता, अहिंसामय जीवन एवं शांत स्वभाव को देखकर बहुधा वन्यपशु स्वभावगत वैर-विरोध छोड़कर साम्यभाव धारण करते थे। अहि-नकुल तथा गाय और शेर एक घाट पानी पीतें थे। जहां वे ठहरतें, वातावरण सहज शान्तिमय हो जाता था। Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
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