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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ८ तीर्थंकर भगवान महावीर तीर्थंकर भगवान महावीर भरतक्षेत्र व इस युग के चोबीसवें एवं अन्तिम तीर्थंकर थे। उनसे पूर्व ऋषभदेव आदि तेईस तीर्थंकर और हो चुके थे। भगवान अनन्त होते हैं। पर तीर्थंकर एक युग में व भरतक्षेत्र में चोबीस ही होते हैं। प्रत्येक तीर्थंकर, भगवान तो नियम से ही होते हैं; पर प्रत्येक भगवान तीर्थंकर नही। तीर्थंकर हुए बिना भी भगवान हो सकते हैं। प्रत्येक प्रात्मा भगवान बन सकता हैं। जिससे संसार-सागर तिरा जाय उसे तीर्थ कहते हैं और जो ऐसे तीर्थ को करे अर्थात् संसार-सागर से पार ऊतरे तथा ऊतरने का मार्ग बतावे, उन्हें तीर्थंकर कहते हैं। ___ भगवान जन्मते नही, बनते हैं। जन्म से कोई भगवान नही होता। महावीर भी जन्म से भगवान नही थे। भगवान तो वे तब बने, जब उन्होंने अपने को जीता। मोह-राग-द्वेष को जीतना ही अपने को जीतना हैं। भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त जितने गूढ़, गंभीर व ग्राह्य हैं; उनका जीवन उतना ही सादा, सरल एवं सपाट हैं; उसमें विविधताओं को कोई स्थान प्राप्त नहीं हैं। संक्षेप में उनकी जीवन-गाथा मात्र इनती ही हैं कि वे प्रारंभ के तीस वर्षों मे वैभव और विलास के बीच जल से भिन्न कमलवत् रहे। बीच के बारह वर्षों मे जंगल मे परम मंगल की साधना मे एकान्त आत्मआराधना-रत रहे और अंतिम तीस वर्षों में प्राणीमात्र के कल्याण के लिए सर्वोदय धर्मतीर्थ का प्रवर्तन, प्रचार व प्रसार करते रहे। महावीर का जीवनघटना-बहुल नही हैं। घटनाओं में उनके व्यक्तित्व को खोजना व्यर्थ हैं। ५७ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
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