SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ६ षट् कारक आचार्य कुन्दकुन्द ( व्यक्तित्व और कर्तृत्व ) मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुन्दकुन्दार्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।। परम आध्यात्मिक सन्त कुन्दकुन्दाचार्यदेव को समग्र दिगंबर जैन आचार्य परंपरा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त हैं। उन्हें भगवान महावीर और गौतम गणधर के तत्काल बाद मंगलस्वरूप स्मरण किया जाता हैं । प्रत्येक दिगंबर जैन उक्त छंद को शास्त्राध्ययन आरम्भ करने के पूर्व प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक बोलता हैं । दिगंबर साधु अपने आप को कुन्दकुन्दाचार्य की परंपरा का कहलाने में गौरव का अनुभव करते हैं। दिगंबर जैन समाज कुन्दकुन्दाचार्यदेव के नाम एवं काम ( महिमा) से जितना परिचित हैं, उनके जीवन से उतना ही अपरिचित हैं । लोकेषणा से दूर रहने वाले अर्न्तमग्न कुन्दकुन्द ने अपने बारे में कहीं कुछ भी नहीं लिखा हैं । 'द्वादशानुप्रेक्षा' में मात्र नाम का उल्लेख हैं। इसी प्रकार ' बोधपाहुड' में अपने को द्वादश अंग ग्रन्थो के ज्ञाता तथा चौदह पूर्वो का विपुल प्रसार करने वाले श्रुतज्ञानी भद्रबाहु का शिष्य लिखा हैं। 6 यद्यपि परवर्ती ग्रन्थकारो ने श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक आपका उल्लेख किया हैं, उससे उनकी महानता पर तो प्रकाश पड़ता हैं, तथापि उनके जीवन के सम्बन्ध में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती। प्राप्त जानकारी के अनुसार इनका समय विक्रम संवत् का आरंभ काल हैं । श्रुतसागर सूरि ने ' षट् प्राभृत' की टीका - प्रशस्ति में इन्हें कलिकाल सर्वज्ञ कहा हैं । इन्हें कई ऋद्धियाँ प्राप्त थीं और इन्होंने विदेहक्षेत्र में विराजमान ३६ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy