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संसारका बीज
एवमयं कर्मकृतैर्भावैरसमाहितोऽपि युक्त इव । प्रतिभाति बालिशानां प्रतिभासः स खलु भव बीजम् ।। १४ ।।
(पुरुषार्थसिद्धि-उपाय)
अर्थ:--- इसप्रकार यह आत्मा कर्मकृत (रागादि और शरीरादि) भावोंसे असंयुक्त होनेपर भी अज्ञानियोंको संयुक्त जैसे प्रतिभासित होता है; वह प्रतिभास वास्तवमें संसारका बीज है।
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