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सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
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तर्हि न कस्यापि ज्ञायकः, ज्ञायको ज्ञायक एवेति निश्चयः।
किञ्च सेटिकात्र तावच्छेतगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यम्। तस्य तु व्यवहारेण श्वैत्यं कुड्यादिपरद्रव्यम्। अथात्र कुड्यादे: परद्रव्यस्य श्वैत्यस्य श्वेतयित्री सेटिका किं भवति किं न भवतीति तदुभयतत्त्वसम्बन्धो मीमांस्यते-यदि सेटिका कुड्यादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवतीति तत्त्वसम्बन्धे जीवति सेटिका कुड्यादेर्भवन्ती कुड्यादिरेव भवेत; एवं सति सेटिकायाः स्वद्रव्योच्छेदः। न च द्रव्यान्तरसंक्रमस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वाव्यस्यास्त्युच्छेदः। ततो न भवति सेटिका - कुड्यादेः। यदि न भवति सेटिका कुड्यादेस्तर्हि कस्य सेटिका भवति ? सेटिकाया एव सेटिका भवति। ननु कतराऽन्या सेटिका सेटिकायाः यस्या: सेटिका भवति ? न खल्वन्या सेटिका सेटिकाया:, किन्तु स्वस्वाम्यंशावेवान्यौ।
तब फिर ज्ञायक किसीका नहीं है, ज्ञायक ज्ञायक ही है-यह निश्चय है।
(इसप्रकार यहाँ यह बताया है कि: ‘आत्मा परद्रव्यको जानता है'-यह व्यवहार-कथन है; 'आत्मा अपनेको जानता है'-इस कथनमें भी स्व-स्वामीअंशरूप व्यवहार है; 'ज्ञायक ज्ञायक ही है'-यह निश्चय है।)
और (जिसप्रकार ज्ञायकके सम्बन्धमें दृष्टांत-दार्टीतसे कहा है) इसीप्रकार ही दर्शकके सम्बन्धमें कहा जाता है:-इस जगतमें कलई श्वेतगुणसे परिपूर्ण स्वभाववाला द्रव्य है। दीवार-आदि परद्रव्य व्यवहारसे उस कलईका श्वैत्य (कलईके द्वारा श्वेत किये जानेयोग्य पदार्थ) है। अब, 'श्वेत करनेवाली कलई, श्वेत करानेयोग्य दीवारआदि परद्रव्य की है या नहीं ?'-इसप्रकार उन दोनोंके तात्त्विक संबंधका यहाँ विचार किया गया है:-यदि कलई दीवार-आदि परद्रव्यकी हो तो क्या हो यह प्रथम विचार करते हैं: ‘जिसका जो होता हे वह वही होता है, जैसा आत्मा का ज्ञान होनेसे ज्ञान वह आत्मा ही है;'-ऐसा तात्त्विक संबंध जीवंत (विद्यमान) होनेसे, कलई यदि दीवार-आदिकी हो तो कलई उन दीवार आदि ही होनी चाहिये (अर्थात् कलई दीवार-आदिस्वरूप ही होनी चाहिये); ऐसा होनेपर, कलई के स्वद्रव्यका उच्छेद हो जायेगा। किन्त द्रव्यका उच्छेद तो नहीं होता. क्योंकि एक द्रव्यका अन्य द्रव्यरूपमें सक्रमण होनेका तो पहले ही निषेध किया गया है। इसलिये ( यह सिद्ध हुआ कि ) कलई दीवार-आदिकी नहीं है। (आगे और विचार करते हैं:) यदि कलई दीवारआदिकी नहीं है तो कलई किसकी है ? कलई की ही कलई है। (इस) कलई से भिन्न ऐसी दूसरी कौन सी कलई है कि जिसकी ( यह) कलई है ? (इस) कलई से भिन्न अन्य कोई कलई नहीं है, किन्तु वे दो स्व-स्वामीरूप अंश ही हैं।
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