________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
मोक्ष अधिकार
४३७
को हि नामायमपराध: ?
संसिद्धिराधसिद्धं साधियमाराधियं च एयटुं। अवगदराधो जो खलु चेदा सो होदि अवराधो।। ३०४ ।। जो पुण णिरावराधो चेदा णिस्संकिओ उ सो होइ। आराहणाइ णिच्चं वट्टेइ अहं ति जाणंतो।।३०५ ।।
संसिद्धिराधसिद्ध साधितमाराधितं चैकार्थम्। अपगतराधो यः खलु चेतयिता स भवत्यपराधः।। ३०४ ।। यः पुनर्निरपराधश्चेतयिता निरशङ्कितस्तु स भवति। आराधनया नित्यं वर्तते अहमिति जानन्।। ३०५ ।।
परका ग्रहण न करे, तो बंधकी शंका क्यों होगी ? इसलिये परद्रव्यको छोड़कर शुद्ध आत्माका ग्रहण करना चाहिये। तभी निरपराध हुआ जाता है।
अब प्रश्न होता है कि 'यह अपराध' क्या है? उसके उत्तरमें अपराधका स्वरूप कहते हैं:
संसिद्धि, सिद्धि जु राध, अरु साधित आराधित एक है। ये राधसे जो रहित है, वो आतमा अपराध है ।। ३०४।। अरु आतमा जो निरपराधी, होय है निःशङ्क होय है। वर्ते सदा आराधनासे , जानता 'मैं' आत्मको ।। ३०५ ।।
गाथार्थ:- [ संसिद्धिराधसिद्धम् ] संसिद्धि, *राध, सिद्ध , [ साधितम् आराधितं च] साधित और आराधित- [ एकार्थम् ] ये एकार्थवाची शब्द हैं; [ यः खलु चेतयिता] जो आत्मा [अपगतराधः] 'अपगतराध' अर्थात् राधसे रहित है [स:] वह आत्मा [ अपराधः ] अपराध [ भवति ] है।
[पुनः ] और [ यः चेतयिता] जो आत्मा [ निरपराधः ] निरपराध है [ सः तु] वह [ निरशङ्कितः भवति ] निःशंक होता है; [ अहम् इति जानन् ] 'जो शुद्ध आत्मा है सो ही मैं हूँ ' ऐसा जानता हुआ [ आराधनया ] आराधनासे [ नित्यं वर्तते ] सदा वर्तता है।
* राध = आराधना, प्रसन्नता; कृपा; सिद्धि; पूर्णता; सिद्ध करना; पूर्ण करना।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com