________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
समयसार
श्री समयसारजी की स्तुति
हरिगीत संसारी जीवनां भाव मरवा टालवा करुणा करी, सरिता वहावी सुधा तणी प्रभु वीर! ते संजीवनी।
शोषाती देखी सरितने करुणाभीना हृदये करी, मुनिकुन्द संजीवनी समयप्राभृत तणे भाजन भरी।।
अनुष्टुप् कुन्दकुन्द रच्यु शास्त्र, साथिया अमृते पूर्या; ग्रंथाधिराज! तारामां भावो ब्रह्मांडना भर्या।
शिखरिणी अहो! वाणी तारी प्रशमरस-भावे नितरती; मुमुक्षुने पाती अमृतरस अंजलि भरी भरी। अनादिनी मूर्छा विष तणी त्वराथी उतरती; विभावेथी थंभी स्वरूप भणी दोड़े परिणती।।
शार्दूलविक्रीड़ित तूं छे निश्चयग्रन्थ, भङ्ग सघला व्यवहारना भेदवा
तूं प्रज्ञाछीणी ज्ञानने उदयनी संधि सहु छेदवा। साथी साधकनो, तूं भानु जगनो, संदेश महावीरनो, विसामो भवक्लांतना हृदयनो, तुं पंथ मुक्ति तणो।
वंसततिलका सूण्ये तने रसनिबंध शिथिल थाय, जाण्ये तने हृदय ज्ञानी तणां जणांय। तूं रुचतां जगतनी रुचि आलसे सौ, तूं रीझतां सकलज्ञायकदेव रीझे ।।
अनुष्टुप् बनावू पत्र कुन्दननां, रत्नोंना अक्षरो लखी, तथापि कुन्दसूत्रोंना अंकाये मूल्य ना कदी ।।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com