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समयसार
२८
गाथा
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विषय ज्ञान लक्षण है और आत्मा लक्ष्य है ज्ञानकी प्रसिद्धि ही आत्मा की प्रसिद्धि होती है इसलिये आत्माको ज्ञानमात्र कहा है, एक ज्ञान क्रियारूपही परिणत आत्मामें अनन्तशक्तियाँ प्रगट हैं उनमें से
सैंतालीस शक्तियों के नाम तथा लक्षणोंका कथन उपाय-उपेयभाव का वर्णन; उनमें आत्मा परिणामी होनेसे साधक
-पना और सिद्धपना -ये दोनों भाव अच्छी तरह बनते हैं ऐसा कथन थोड़े कलशों में अनेक विचित्रता से भरे हुए आत्मा की महिमा
करके सर्वविशुद्ध ज्ञान अधिकार सम्पूर्ण टीकाकार आचार्यदेव का वक्तव्य, आत्मख्याति टीका समपूर्ण श्री पं० जयचन्दजी छाबड़ाका वक्तव्य, ग्रन्थ समाप्त
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