________________
२३०
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
समयसार
( शार्दूलविक्रीडित )
कर्ता कर्मणि नास्ति नास्ति नियतं कर्मापि तत्कर्तरि द्वन्द्वं विप्रतिषिध्यते यदि तदा का कर्तृकर्मस्थितिः । ज्ञाता ज्ञातरि कर्म कर्मणि सदा व्यक्तेति वस्तुस्थितिर्नेपथ्ये बत नानटीति रभसा मोहस्तथाप्येष किम्।। ९८ ।।
अथवा नानट्यतां, तथापि -
यहाँ कोई प्रश्न करता है कि अविरत - सम्यग्दृष्टि आदिको जबतक चारित्रमोहका उदय रहता है तबतक वह कषायरूप परिणमन करता है इसलिये वह उसका कर्ता कहलाता है या नहीं ? उसका समाधान:- अविरत - सम्यग्दृष्टि इत्यादिके श्रद्धा-ज्ञानमें परद्रव्यके स्वामित्वरूप कर्तृत्वका अभिप्राय नहीं है; कषायरूप परिणमन है वह उदयकी बलवत्ताके कारण है; वह उसका ज्ञाता है; इसलिये उसके अज्ञान संबंधी कर्तृत्व नहीं है । निमित्त की बलवत्ता से परिणमनका फल किंचित् होता है वह संसारका कारण नहीं है। जैसे वृक्षकी जड़ काट देनेके बाद वह वृक्ष कुछ समय तक रहे अथवा न रहे - प्रतिक्षण उसका नाश ही होता जाता है, इसीप्रकार यहाँ भी समझना। ९७ ।
पुनः इसी बात को दृढ़ करते हैं :
श्लोकार्थ :- [ कर्ता कर्मणि नास्ति, कर्म तत् अपि नियतं कर्तरि नास्ति ] निश्वयसे न तो कर्ता कर्ममें है, और न कर्म कर्तामें ही है- [ यदि द्वन्द्वं विप्रतिषिध्यते ] यदि इसप्रकार परस्पर दोनोंका निषेध किया जाये [ तदा कर्तृकर्मस्थितिः का ] तो कर्ता-कर्मकी क्या स्थिति होगी ? ( अर्थात् जीव- पुद्गलके कर्ताकर्मपन कदापि नहीं हो सकेगा। ) [ ज्ञाता ज्ञातरि, कर्म सदा कर्मणि] इसप्रकार ज्ञाता सदा ज्ञातामें ही है और कर्म सदा कर्ममें ही है [ इति वस्तुस्थितिः व्यक्ता ] ऐसी वस्तुस्थिति प्रगट है [ तथापि बत] तथापि अरे ! [ नेपथ्ये एषः मोहः किम् रभसा नानटीति ] नेपथ्यमें यह मोह क्यों अत्यंत वेग पूर्वक नाच रहा है ? ( इसप्रकार आचार्यको खेद और आश्चर्य होता है | )
भावार्थ:-कर्म तो पुद्गल है, जीवको उसका कर्ता कहना असत्य है। उन दोनोंमें अत्यंत भेद है, न तो जीव पुद्गलमें है और न ही पुद्गल जीवमें ; तब फिर उनमें कर्ताकर्मभाव कैसे हो सकता है ? इसलिये जीव तो ज्ञाता है सो ज्ञाता ही है, पुद्गलकर्मोंका कर्ता नहीं है; और पुद्गलकर्म है वे पुद्गल ही है, ज्ञाताका कर्म नहीं है। आचार्यदेवने खेदपूर्वक कहा है कि- इसप्रकार प्रगट भिन्न द्रव्य हैं तथापि 'मैं कर्ता
* देखो गाथा १३१ के नीचे का फुटनोट ।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com