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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जीव- अजीव अधिकार तत्र भवे जीवानां संसारस्थानां भवन्ति वर्णादयः । संसारप्रमुक्तानां न सन्ति खलु वर्णादयः केचित् ।। ६१ ।। १९३ यत्किल सर्वास्वप्यवस्थासु यदात्मकत्वेन व्याप्तं भवति तदात्मकत्वव्याप्तिशून्य न भवति, तस्य तैः सह तादात्म्यलक्षणः सम्बन्ध: स्यात्। ततः सर्वास्वप्यवस्थासु वर्णाद्यात्मकत्वव्याप्तस्य भवतो वर्णाद्यात्मकत्वव्याप्तिशून्यस्याभवतश्च पुद्गलस्य वर्णादिभिः सह तादात्म्यलक्षण: सम्बन्धः स्यात्; संसारावस्थायां कथञ्चिद्वर्णाद्यात्मकत्व-व्याप्तस्य भवतो वर्णाद्यात्मकत्वव्याप्तिशून्यस्याभवतश्चापि सर्वथा वर्णाद्यात्मकत्व व्याप्तिशून्यस्य भवतो वर्णाद्यात्मकत्वव्याप्तस्याभवतश्च जीवस्य वर्णादिभिः सह तादात्म्यलक्षणः सम्बन्धो न कथञ्चनापि स्यात्। मोक्षावस्थायां गाथार्थ:- [ वर्णादयः ] जो वर्णादिक हैं वे [ संसारस्थानां] संसारमें स्थित [ जीवानां ] जीवोंके [ तत्र भवे ] उस संसारमें [ भवन्ति ] होते हैं और [ संसारप्रमुक्तानां ] संसारसे मुक्त हुए जीवोंके [ खलु ] निश्चयसे [ वर्णादयः केचित् ] वर्णादिक कोई भी (भाव) [ न सन्ति ] नहीं हैं; ( इसलिये तादात्म्यसंबंध नहीं है)। टीका:- जो निश्चयसे समस्त ही अवस्थाओंमें यद् - आत्मकपनेसे अर्थात् जिसस्वरूपपनेसे व्याप्त हो और तद् - आत्मकपनेकी अर्थात् उस-स्वरूपपनेकी व्याप्तिसे रहित न हो, उसका उनके साथ तादात्म्यलक्षण संबंध होता है । ( जो वस्तु सर्व अवस्थाओं में जिस भावस्वरूप हो और किसी अवस्थामें उस भावस्वरूपता को न छोड़, उस वस्तुका उन भावोंके साथ तादात्म्यसंबंध होता है ।) इसलिये सभी अवस्थाओंमें जो वर्णादिस्वरूपतासे व्याप्त होता है और वर्णादिस्वरूपताकी व्याप्तिसे रहित नहीं होता है ऐसे पुद्गलका वर्णादिभावोंके साथ तादात्म्यलक्षण संबंध है, और यद्यपि संसार-अवस्थामें कथंचित् वर्णादिस्वरूपता से व्याप्त होता है तथा वर्णादिस्वरूपताकी व्याप्तिसे रहित नहीं होता है तथापि मोक्ष - अवस्थामें जो सर्वथा वर्णादिस्वरूपताकी व्याप्तिसे रहित होता है और वर्णादिस्वरूपतासे व्याप्त नहीं होता ऐसे जीवका वर्णादिभावोंके साथ किसी भी प्रकारसे तादात्म्यलक्षण संबंध नहीं है । भावार्थ:-द्रव्यकी सर्व अवस्थाओंमें द्रव्यमें जो भाव व्याप्त होते हैं उन भावों के साथ द्रव्यका तादात्म्यसंबंध कहलाता है। पुद्गलकी सर्व अवस्थाओंमें पुद्गलमें वर्णादिभाव व्याप्त हैं इसलिये वर्णादिभावों के साथ पुद्गलका तादात्म्यसंबंध है। संसार-अवस्थामें जीवमें वर्णादिभाव किसी प्रकारसे कहे जा सकते हैं किन्तु मोक्षअवस्थामें जीवमें वर्णादिभाव सर्वथा नहीं हैं इसलिये जीवका वर्णादिभावोंके साथ तादात्म्यसंबंध नहीं है यह बात न्यायप्राप्त है 1 Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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