________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
37
शास्त्राभ्यास से प्रभावना इस काल में आयु, बुद्धि आदि अल्प हैं; इसलिए प्रयोजन मात्र अभ्यास करना, शास्त्रों का तो पार है नहीं। और सुन! कुछ जीव व्याकरणादिक के बिना भी तत्त्वोपदेशरूप भाषाशास्त्रों के द्वारा व उपदेश सुनकर तथा सीखने से तो तत्वज्ञानी होते देखे जाते हैं और कई जीव केवल व्याकरणादिक के ही अभ्यास में जन्म गंवाते हैं और तत्त्वज्ञानी नहीं होते हैं - ऐसा भी देखा जाता है।
सुन! व्याकरणादिक का अभ्यास करने से पुण्य नहीं होता; किन्तु धर्मार्थी होकर उनका अभ्यास करे तो किंचित् पुण्य होता है तथा तत्त्वोपदेशक शास्त्रों के अभ्यास से सातिशय महान पुण्य उत्पन्न होता हैं; इसलिये भला तो यह है कि ऐसे तत्त्वोपदेशक शास्त्रों का अभ्यास करना। इस प्रकार शब्द-शास्त्रादिक के पक्षपाती को सन्मुख किया।
अब अर्थ का पक्षपाती कहता है कि इस शास्त्र का अभ्यास करने से क्या है ? सर्व कार्य धन से बनते हैं। धन से ही प्रभावना आदि धर्म होता है, धनवान के निकट अनेक पंडित आकर रहते हैं। अन्य भी सर्वकायों की सिद्धि होता है। अतः धन पैदा करने का उद्यम करना।
उसको कहते हैं- अरे पापी! धन कुछ अपना उत्पन्न किया तो होता नहीं, भाग्य से होता है। ग्रन्थाभ्यास आदि धर्मसाधन से जो पुण्य की उत्पत्ति होती है, उसी का नाम भाग्य है। यदि धन होना है तो शास्त्राभ्यास करने से कैसे नहीं होगा ? अगर नहीं होना है तो शास्त्राभ्यास नहीं करने से कैसे होगा ? इसलिये धन का होना न होना तो उदयाधीन है, शास्त्राभ्यास में क्यों शिथिल होता है ? और सुन! धन है वह तो विनाशीक है, भय संयुक्त है, पाप से उत्पन्न होता है, नरकादि का कारण है।
जो यह शास्त्राभ्यास का ज्ञानधन है, वह अविनाशी है, भयरहित है धर्मरूप है, स्वर्गमोक्ष का कारण है, महंत पुरुष तो धनादिक को छोड़कर शास्त्राभ्यास में ही लगता है और तू पापी शास्त्राभ्यास को छोड़कर धन पैदा करने की बढाई करता है, तो तू अनन्त संसारी है। ___ तूने कहा कि प्रभावनादि धर्म भी धन से होता है; किन्तु वह प्रभावनादि धर्म तो किंचित् सावद्यक्रिया संयुक्त है; इसलिये समस्त सावद्यरहित शास्त्राभ्यासरूप धर्म है, वह प्रधान है। यदि ऐसा न हो तो गहस्थ अवस्था में प्रभावनादि धर्मसाधन थे. उनको छ होकर शास्त्राभ्यास में किसलिये लगते हैं ? शास्त्राभ्यास करने से प्रभावनादि भी विशेष होती है।
- प्रस्तावना, सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com