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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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है। किसी पुण्य के प्रभाव से दो दिन इसका स्वामीपना स्वीकार करके छोड़कर मर जाओगे। यह धन साथ नहीं जायेगा। पुत्र के ममत्व से महादुराचार करके यह धन संग्रह कर रहे हो, उस धन के ममत्व तथा पुत्रादि के ममत्व से संसार में अपने को भूलकर नरक जा पहुँचोगे; तथा अनेक पर्यायों में दीन दरिद्री होकर विचरण करोगे।
प्रत्यक्ष देखते हैं - हजारों अन्न–अन्न करते मर जाते हैं, दरिद्री-रंक होकर घर-घर के दरवाजे पर फिरते हैं, दीनता दिखाते हैं। फिर भी उनकी ओर कोई देखता ही नहीं है, कोई उनकी सुनता ही नहीं है। यह सभी प्रभाव पूर्व जन्मों में धन से तीव्र ममता बांधकर, कृपण होकर धन संग्रह किया था, उसका फल है।
तुम्हारे पास वैभव, सम्पदा, रत्न, स्वर्ण, चाँदी आदि है; तथा रसों सहित भोजन, शीलवंती, रूपवंती राग-रसभरी स्त्रियों का मिलन, आज्ञाकारी प्रवीण सुपुत्र, हित में सावधान कार्यसाधक चतुर सेवक, बहुत लम्बे चौड़े ऊँचे महलों में मकानों में निवास, इत्यादि जो साम्रगी पाई है वह पूर्वजन्म में कोई दान दिया था उसका फल है। दान के प्रभाव से भोगभूमि में जन्म तथा स्वर्ग के विमानों का स्वामीपना होता है, जहाँ असंख्यात काल तक सुख भोगने को मिलता है। यहाँ की तुच्छ संपदा, काय क्लेश सहित महा मलिन शरीर आदि उसके सामने क्या चीज है ? और ऐसी सम्पदा भी तुम्हारे यहाँ स्थिर नहीं रहेगी। __ तुम्हारा विचार ऐसा है - यह हमारी लक्ष्मी है, हमारे कुल में चली आ रही है, हम बुद्धिहीन नहीं है जो हमारी लक्ष्मी नष्ट हो जायगी। जो मूर्ख बुद्धिहीन होकर भूलें करते हुए चलते हैं उनकी सम्पत्ति नष्ट हो जाती है ? ऐसा तुम्हारा भ्रम है। वह मिथ्यादर्शन के उदय के जोर से बड़ा भ्रम है तथा अनंतानुबंधी कषाय के उदय से अभिमान है, वह थोड़े दिनों में ही नरक का नारकी बना देगा।
अतः हे आत्मन्! यदि तुम्हें जिनेन्द्रदेव के वचनों का श्रद्धान है, धर्म से प्रीति है तथा दुःखी जीवों को देखकर दया आती है तो हृदय में ऐसा सही विचार करो - मैं मूढ़ आत्मा ने, धन से ममता करके पराने पैत्रिक धन की तो बडे प्रयत्न से रक्षा की है. तथा नया भी बहत धन कमाया है। धन कमाने के लिये मैंने बहुत क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण आदि दुःख भोगे हैं, तथा अनेक आरंभ, व्यापार, राजसेवा, विदेश गमन, समुद्र प्रवेश इत्यादि किये हैं। अधर्मी म्लेच्छ आदि को अनुकूल करने में, राजी करने में, बहुत निंदनीय कार्य करना पड़े हैं, जिसतिस प्रकार से धन पैदा किया है। अब मरण तो अचानक आयेगा, धन बचा नहीं सकेगा। __इसलिये अब मुझे अन्याय से, अनीति से तथा पाप के धंधों से, पापियों की सेवा करने से, कपट के अनेक तरीकों से धन पैदा करने का शीघ्र ही त्याग करना चाहिये। न्याय से कमाया हुआ जो धन है उसमें मर्यादा बांधकर रहना है, एवं जिनका धन उन्हें भूल में डालकर गलती से अपने पास रख लिया है उस धन को उन्हें वापिस देकर क्षमा मांगना है।
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