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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम - सम्यग्दर्शन अधिकार]
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लोक में कलह और अपयश होता है, परलोक में अशुभ कर्म के फल से दारिद्र, अपमान आदि अनेक भवों तक प्राप्त होते हैं।
दान में न देने योग्य : अब जो देने योग्य नहीं ऐसा खोटा पदार्थ का दान कुदान ही है। कुदान नहीं देना चाहिये। भूमिदान देना योग्य नहीं है। उसमें हल, फावड़े, खुरपा आदि द्वारा भूमि को खोदा जाने से बहुत हिंसा होती है, बहुत आरंभ, पंचेंद्रिय आदि सर्प, चूहा, हिरण, सुअर आदि बड़े-बड़े जीबों को अनाज का नुकसान करनेवाले समझकर मार डालते हैं। भूमि की ममता से भाई-भाई आपस में मार-पीट करके मरजाते हैं, तीव्र राग का कारण है ऐसे भूमिदान से महाघोर पाप का बंध जानो।
महाहिंसा का कारण जिससे अनेक प्रकार की हिंसा होती है ऐसे लोहे का दान महाकुदान जानकर उसे छोड़ना।
स्वर्णदान भी छोड़ना। जिसे प्राप्त करनेवाला नाश को प्राप्त हो जाय, मारा जाय, सदाकाल भयभीत बना रहे, संयम का नाश कर दे। इस धन से राग, द्वेष , काम, क्रोध, लोभ, मद, भय, आरंभ आदि की प्रचुर उत्पत्ति होती है, आत्मा का स्वरूप विस्मरण हो जाता है। इसलिये वीतराग धर्म के इच्छुक को स्वर्णदान देने को पाप समझकर त्याग देना चाहिये।
करोड़ों त्रस जीवों की उत्पत्ति का कारण ऐसा तिल दान भी त्यागने योग्य है।
चक्की, चूल्हा, छाजला, बुहारी, मूसल, फावड़ा, दतीला, अन्न, तेल, दीपक, गुड़, रस इत्यादि महापाप सामग्री से भरे महाआरंभ मोह को उत्पन्न करानेवाले मकान के दान को धर्म मानकर मिथ्याधर्मी देते हैं, वे सब कुदान है।
जिस गाय को बांधने में हरी घास आदि चरने में, जिसके शरीर में छोटे-छोटे अनेक प्रकार के कीड़े, जीया, बुग आदि उत्पन्न होने में, मल में, मूत्र में असंख्यात जीव उत्पन्न होते हैं, मरते हैं, सीगों से मारने से, खुर पूँछ आदि से अनेक जीवों का घात करनेवाली गौ का दान वह कुदान है।
कुदान त्याग : संसार का बढ़ानेवाला महाबंधन करनेवाला जो कन्या का दान है वह कुदान है।
यहाँ कोई कहता है - कन्यादान किये बिना गृहस्थ कैसे रह सकता है ? यह तो ठीक है। गृहस्थ अपनी कन्या को विवाह योग्य कुल में उत्पन्न जिनधर्मी वर को उसका व्यवहार चतुराई आदि गुणों को देखकर कन्या देता है परन्तु, कन्यादान को धर्म तो नहीं श्रद्धान करता है, जिनधर्मी तो कन्यादान को पाप ही श्रद्धान करता है। जैसे गृहस्थी के अनेक आरंभ आदि पापबंध के कारण हैं उसी प्रकार कन्यादान भी पापबंध का कारण है, परन्तु यह तो विषयों का दण्ड है जो अंगीकार करने से ही चुकेगा।
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