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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रथम सम्यग्दर्शन अधिकार
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परिशिष्ट - १
दया दान पूजा शील पूंजी सों अजानपने, जितनों हंस तू अनादिकाल में कमायगो । तेरे बिन विवेक की कमाई न रहे हाथ, भेदज्ञान बिना एक समय में गमायगो ।। अमल अखंडित स्वरूप शुद्ध चिदानंद, याके वणिज मांहि एक समय तो तू रमायगो । मेरी समझ मान जीव अपने प्रताप आप, एक समय की कमाई तू अनंतकाल खायगो।।
- पं. बनारसीदासजी सम्यक्त्व की आराधना ज्ञान-चरित्र और तप इन तीन गुणों को उज्ज्वल करनेवाली यह श्रद्धा ही प्रधान आराधना है। इसकी विद्यमानता में ही तीनों आराधनायें आराधक भाव से वर्तती हैं। अत: सम्यक्त्व की अकथ्य और अपूर्व महिमा जानकर इस पवित्र कल्याणमूर्ति सम्यग्दर्शन को अनन्तानन्त दुःखरूप अनादि संसार की अशेष निवृत्ति के लिये भक्ति पूर्वक अंगीकार करो, प्रति समय आराधो।।
- आत्मानुशासन हे भव्य जीवों! तुम इस सम्यग्दर्शन रूपी अमृत का पान करो। यह सम्यग्दर्शन अनुपम सुख का भण्डार है, सर्वकल्याण का बीज है और संसार समुद्र से पार उतरने के लिये जहाज है। इसे एक मात्र भव्यजीव ही प्राप्त कर सकते हैं। पापरूपी वृक्ष को काटने के लिये यह कुल्हाड़ी के समान है। पवित्र तीर्थों में यही एक पवित्र तीर्थ है और मिथ्यात्व का आत्यंतिक नाशक है।
- ज्ञानार्णव भव्यों! किंचित मात्र लोभ से व भय से कदेवादिक का सेवन करके जिससे अनन्तकाल पर्यन्त महादःख सहना होता है ऐसा मिथ्यात्वभाव करना योग्य नहीं है। जैनधर्म में तो यह आम्नाय है कि पहले बड़ा पाप छुड़ाकर फिर छोटा पाप छुड़ाया है, इसलिये इस मिथ्यात्व को सप्त व्यवसनादिक से भी बड़ा पाप जानकर पहले छुड़ाया है।
- मोक्षमार्गप्रकाशक प्रारम्भ में सर्वप्रकार के प्रयत्न से सम्यग्दर्शन उत्तम रीति से अंगीकार करना चाहिये, क्योंकि सम्यग्दर्शन के होने पर ही ज्ञान और चारित्र सम्यकपने को प्राप्त होते हैं। - पुरुषार्थसिद्धयुपाय
जैसे बीज के अभाव मे वृक्ष की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फल की प्राप्ति संभव नहीं है उसी प्रकार सम्यक्त्व के अभाव में ज्ञान और चारित्र की भी उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फल की प्राप्ति नहीं होती है। सम्यग्दर्शन मोक्षमार्ग का खेवटिया है। सम्यग्दर्शन के समान तीनकाल और तीनलोक में प्राणियों की कल्याण कारक अन्य कोई वस्तु नहीं है।
- रत्नकरण्ड श्रावकाचार एक और सम्यग्दर्शन का लाभ प्राप्त हो और दूसरी ओर तीन लोक का राज्य प्राप्त हो तो तीन लोक के राज्य की अपेक्षा भी सम्यग्दर्शन का लाभ श्रेष्ठ है, क्योंकि तीन लोक का राज्य तो मिलने पर भी सीमित काल में छूट जाता है, परन्तु सम्यग्दर्शन तो जीव को अक्षय सुख प्राप्त कराता है।
- भगवती आराधना सम्यक्त्व सब रत्नों में महारत्न है, सब योगों में उत्तम योग है, सब ऋद्धियों में महाऋद्धि है। अधिक क्या ? सम्यक्त्व ही सब ऋद्धियों को करनेवाला है।
___ - स्वामीकार्तिकेयानुपेक्षा सम्यक्त्व के गुण और मिथ्यात्व के दोषों को जानकर, सम्यक्त्वरूपी रत्न को भावपूर्वक धारण कर। यह सम्यग्दर्शन गुणरूपी रत्नों में सार है और मोक्षरूपी मन्दिर का प्रथम सोपान है। - भाव पाहुड़
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