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आठवाँ अधिकार [ उपदेशका स्वरूप ] अनुयोगोंका प्रयोजन
प्रथमानुयोगका प्रयोजन २६८, करणानुयोगका प्रयोजन २६९ चरणानुयोगका प्रयोजन २७०, द्रव्यानुयोगका प्रयोजन २७१ अनुयोगोंके व्याख्यानका विधान
प्रथमानुयोगके व्याख्यानका विधान २७१, करणानुयोगके व्याख्यानका विधान २७५, चरणानुयोगके व्याख्यानका विधान २७७, द्रव्यानुयोगके व्याख्यानका विधान २८४
अनुयोगोंके व्याख्यानकी पद्धति
व्याकरण-न्यायादि शास्त्रोंका प्रयोजन अनुयोगोंमें दोष-कल्पनाओंका निराकरण
प्रथमानुयोगमें दोष कल्पनाका निराकरण २८८, करणानुयोगमें दोष कल्पनाका निराकरण २९०, चरणानुयोगमें दोष कल्पनाका निराकरण २९१, द्रव्यानुयोगमें दोष कल्पनाका निराकरण २९२ व्याकरण-न्यायादि शास्त्रोंकी उपयोगिता
अनुयोगोंमें दिखाई देनेवाले परस्पर विरोधका निराकरण अनुयोगोंका अभ्यासक्रम
नौवाँ अधिकार [ मोक्षमार्गका स्वरूप ]
आत्माका हित मोक्ष ही है ३०५, पुरुषार्थसे ही मोक्षप्राप्ति ३०९ मोक्षमार्गका स्वरूप :
सम्यग्दर्शनका सच्चा लक्षण : तत्त्वार्थ सात ही क्यों ? ३१६, तत्त्वार्थश्रद्धान लक्षणमें अव्यापित, अतिव्याप्ति और असम्भवदोषका परिहार ३९९, सम्यक्त्वके विभिन्न लक्षणोंका समन्वय ३२३
सम्यक्त्वके भेद और उनका स्वरूप
सम्यग्दर्शनके आठ अंग सम्यग्दर्शनके पच्चीस दोष
परिशिष्ट १ - समाधिमरण स्वरूप परिशिष्ट २ - रहस्यपूर्ण चिट्ठी परिशिष्ट ३ - परमार्थ वचनिका परिशिष्ट ४ - उपादान - निमित्तकी चिट्ठी
परिशिष्ट
: पंडित गुमानिरामजी
: पंडित टोडरमलजी
: पंडित बनारसीदासजी
: पंडित बनारसीदासजी
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२६८ - २७१
२७१ - २८६
२८६ - २८७
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