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दूसरा अधिकार]
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कराके उस परिणमन का बुरा चाहता है।
इस प्रकार क्रोधसे बुरा चाहने की इच्छा तो हो, बुरा होना भवितव्य आधीन है।
तथा मान का उदय होने पर पदार्थमें अनिष्टपना मान कर उसे नीचा करना चाहता है, स्वयं ऊँचा होना चाहता है; मल, धूल आदि अचेतन पदार्थों में घृणा तथा निरादर आदि से उनकी हीनता, अपनी उच्चता चाहता है। तथा पुरुषादिक सचेतन पदार्थों को झुकाना, अपने आधीन करना इत्यादिरूप से उनकी हीनता, अपनी उच्चता चाहता है। तथा स्वयं लोक में जैसे उच्च दिखे वैसे श्रृंगारादि करना तथा धन खर्च करना इत्यादिरूप से औरोंको हीन दिखा कर स्वयं उच्च होना चाहता है। तथा अन्य कोई अपने से उच्च कार्य करे उसे किसी उपाय से नीचा दिखाता है और स्वयं नीचा कार्य करे उसे उच्च दिखाता है।
इस प्रकार मानसे अपनी महंतताकी इच्छा तो हो, महंतता होना भवितव्य आधीन है।
तथा माया का उदय होनेपर किसी पदार्थ को इष्ट मानकर नाना प्रकार के छलों द्वारा उसकी सिद्धि करना चाहता है। रत्न सुवर्णादिक अचेतन पदार्थों की तथा स्त्री, दासी, दासादि सचेतन पदार्थों की सिद्धिके अर्थ अनेक छल करता है। ठगनेके अर्थ अपनी अनेक अवस्थाएँ करता है तथा अन्य अचेतन-सचेतन पदार्थों की अवस्था बदलता है। छलसे अपना अभिप्राय सिद्ध करना चाहता है।
इस प्रकार मायासे इष्टसिद्धि के अर्थ छल तो करे, परन्तु इष्टसिद्धि होना भवितव्य आधीन है।
तथा लोभका उदय होने पर पदार्थों को इष्टमान कर उनकी प्राप्ति चाहता है। वस्त्राभरण, धन-धान्यादि अचेतन पदार्थों की तृष्णा होती है; तथा स्त्री-पुत्रादिक चेतन पदार्थों की तृष्णा होती है। तथा अपनेको या अन्य सचेतन-अचेतन पदार्थों को कोई परिणमन होना इष्ट मानकर उन्हें उस परिणमनरूप परिणमित करना चाहता है।
इस प्रकार लोभ से इष्ट प्राप्ति की इच्छा तो हो, परन्तु इष्ट प्राप्ति होना भवितव्य के आधीन है।
इस प्रकार क्रोधादिके उदयसे आत्मा परिणमित होता है।
वहाँ ये कषाय चार प्रकारके हैं। १. अनन्तानुबंधी, २. अप्रत्याख्यानावरण , ३. प्रत्याख्यानावरण, ४. संज्वलन। वहाँ (जिनका उदय होनेपर आत्माको सम्यक्त्व न हो, स्वरूपाचरणचारित्र न हो सके वे अनन्तानुबंधी कषाय हैं। * ) जिनका उदय होनेपर
* यह पंक्ति मूल प्रति में नहीं है।
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