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दूसरा अधिकार ]
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मतिज्ञान की पराधीन प्रवृत्ति
वहाँ प्रथम तो मतिज्ञान है; वह शरीर के अंगभूत जो जीभ, नासिका, नयन, कान, स्पर्शन ये द्रव्यइन्द्रियाँ और हृदयस्थानमें आठ पँखुरियोंके फूले कमल के आकार का द्रव्यमन - इनकी सहायता से ही जानता है। जैसे - जिसकी दृष्टि मंद हो वह अपने नेत्र द्वारा ही देखता है परन्तु चश्मा लगाने पर ही देखता है, बिना चश्में के नहीं देख सकता। उसी प्रकार आत्मा का ज्ञान मंद है, वह अपने ज्ञान से ही जानता है परन्तु द्रव्यइन्द्रिय तथा मन का संबंध होने पर ही जानता है, उनके बिना नहीं जान सकता। तथा जिस प्रकार नेत्र तो जैसे के तैसे हैं, परन्तु चश्में में कुछ दोष हआ हो तो नहीं देख सकता अथवा थोड़ा दीखता है या और का और दीखता है; उसी प्रकार अपना क्षयोपशम तो जैसा का तैसा है, परन्तु द्रव्यइन्द्रिय तथा मन के परमाणु अन्यथा परिणमित हुए हों तो जान नहीं सकता अथवा थोड़ा जानता है अथवा और का और जानता है। क्योंकि द्रव्यइन्द्रिय तथा मनरूप परमाणुओं के परिणमन को और मतिज्ञान को निमित्त-नैमित्तिक संबंध है, इसलिये उनके परिणमन के अनुसार ज्ञान का परिणमन होता है। उसका उदाहरण - जैसे मनुष्यादिक को बाल-वृद्ध-अवस्था में द्रव्यइन्द्रिय तथा मन शिथिल हो तब जानपना भी शिथिल होता है;
जैसे शीत वायु आदि के निमित्त से स्पर्शनादि इन्द्रियों के और मनके परमाणु अन्यथा हों तब जानना नहीं होता अथवा थोड़ा जानना होता है।
तथा इस ज्ञान को और बाह्य द्रव्यों को भी निमित्त-नैमित्तिक संबंध पाया जाता है। उसका उदाहरण - जैसे नेत्रइन्द्रिको अंधकारके परमाणु अथवा फूला आदि के परमाणु या पाषाणादिक के परमाणु आड़े आ जायें तो देख नहीं सकती। तथा लाल काँच आड़ा आ जाये तो सब लाल दीखता है, हरित आड़ा आये तो हरित दीखता है – इस प्रकार अन्यथा जानना होता है।
तथा दूरबीन, चश्मा इत्यादि आड़े आयें तो बहुत दीखने लग जाता है। प्रकाश, जल, हिलव्वी काँच इत्यादि के परमाणु आड़े आयें तो भी जैसे का तैसा दीखता है। इस प्रकार अन्य इन्द्रियों तथा मन के भी यथा संभव जानना। मंत्रादिक के प्रयोग से अथवा मदिरापानादिक से अथवा भूतादिक के निमित्त से नहीं जानना, थोड़ा जानना या अन्यथा जानना होता है। इस प्रकार यह ज्ञान बाह्यद्रव्य के भी आधीन जानना।
तथा इस ज्ञान द्वारा जो जानना होता है वह अस्पष्ट जानना होता है; दूर से कैसा ही जानता है, समीप से कैसा ही जानता है, तत्काल कैसा ही जानता है, जानने में बहुत देर हो जाये तब कैसा ही जानता है, किसी को संशय सहित जानता है, किसी को अन्यथा
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