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तीसरा अधिकार [ संसारदुःख तथा मोक्षसुखका निरूपण ]
संसारदुःख और उसका मूलकारण (क) कर्मोंकी अपेक्षासे
ज्ञानावरण और दर्शनावरणके क्षयोपशमसे होनेवाला दुःख और उससे निवृत्ति ४६,
मोहनीयकर्मके उदयसे होनेवाला दुःख और उससे निवृत्ति दर्शनमोहसे दुःख और उससे निवृत्ति ५०, चारित्रमोहसे दुःख और उससे निवृत्ति ५२,
अन्तरायकर्मके उदयसे होनेवाला दुःख और उससे वेदनीयकर्मके उदयसे होनेवाला दुःख और उससे आयुर्म उदयसे होनेवाला दुःख और उससे नामकर्मके उदयसे होनेवाला दुःख और उससे गोत्रकर्मके उदयसे होनेवाला दुःख और उससे निवृत्ति ६२,
नरकगतिके दु:ख ६५, तिर्यंचगतिके दु:ख ६६. मनुष्यगतिके दु:ख ६७, देवगतिके दु:ख ६८
(ख) पर्याय की अपेक्षासे
एकेन्द्रिय जीवोंके दुःख ६२, विकलत्रय व असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंके दुःख ६५, संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंके दुःख
( ग ) दुःखका सामान्य स्वरूप चार प्रकार की इच्छाएँ ७०
मोक्षसुख और उसकी प्राप्तिका उपाय
निवृत्ति ५७, निवृत्ति ५८, निवृत्ति ६९, निवृत्ति ६१,
४६
मिथ्याज्ञानका स्वरूप
मिथ्याचारित्रका स्वरूप
इष्ट-अनिष्टकी मिथ्या कल्पना राग-द्वेषका विधान व विस्तार मोहकी महिमा
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४६
६२
चौथा अधिकार [ मिथ्यादर्शन - ज्ञान - चारित्रका निरूपण ]
७६
७८
९३
७०
मिथ्यादर्शनका स्वरूप
प्रयोजनभूत-अप्रयोजनभूत पदार्थ
मिथ्यादर्शनकी प्रवृत्ति
८०
जीव-अजीवतत्त्व संबंधी अयथार्थ श्रद्धान ८०, आस्रवतत्त्व संबंधी अयथार्थ श्रद्धान ८२, बंधतत्त्व संबंधी अयथार्थ श्रद्धान ८३, संवरतत्त्व संबंधी अयथार्थ श्रद्धान ८३, निर्जरातत्त्व संबंधी अयथार्थ श्रद्धान ८३, मोक्षतत्त्व संबंधी अयथार्थ श्रद्धान ८४, पुण्य-पाप संबंधी अयथार्थ श्रद्धान ८४
७२ - ७५
- ७१
८९
९१
- ८४
८५ - ८८
८८ - ९४