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पहला अधिकार]
पुनश्च , वह कहे कि - कषायोंसे तो असत्यार्थ पद न मिलाये, परन्तु ग्रंथ करनेवालों को क्षयोपशम ज्ञान है, इसलिये कोई अन्यथा अर्थ भासित हो उससे असत्यार्थ पद मिलाये, उसकी तो परम्परा चले ?
समाधान :- मूल ग्रंथकर्ता तो गणधरदेव हैं, वे स्वयं चार ज्ञान के धारक हैं और साक्षात् केवलीका दिव्यध्वनि- उपदेश सुनते हैं, उसके अतिशयसे सत्यार्थ ही भासित होता है और उसहीके अनुसार ग्रंथ बनाते हैं; इसलिये उन ग्रंथोंमें तो असत्यार्थ पद कैसे गूंथे
? तथा जो अन्य आचार्यादिक ग्रंथ बनाते हैं, वे भी यथायोग्य सम्यग्ज्ञानके धारक हैं और वे मूल ग्रंथों की परम्परासे ग्रंथ बनाते हैं। दूसरी बात यह है कि - जिन पदोंका स्वयं को ज्ञान न हो उनकी तो वे रचना करते नहीं, और जिन पदों का ज्ञान हो उन्हें सम्यग्ज्ञान प्रमाणसे ठीक गूंथते हैं। इसलिये प्रथम तो ऐसी सावधानीमें असत्यार्थ पद गूंथे जाते नहीं,
और कदाचित् स्वयं को पूर्व ग्रंथों के पदों का अर्थ अन्यथा ही भासित हो, तथा अपनी प्रमाणता में भी उसी प्रकार आ जाये तो उसका कुछ सारा (वश) नहीं है; परन्तु ऐसा किसी को ही भासित होता है सब ही को तो नहीं, इसलिये जिन्हें सत्यार्थ भासित हुआ हो वे उसका निषेध करके परम्परा नहीं चलने देते।
पुनश्च, इतना जानना कि – जिनको अन्यथा जाननेसे जीवका बुरा हो ऐसे देवगुरु-धर्मादिक तथा जीव-अजीवादिक तत्त्वोंको तो श्रद्धानी जैनी अन्यथा जानते ही नहीं; इनका तो जैनशास्त्रोंमें प्रसिद्ध कथन है। और जिनको भ्रमसे अन्यथा जानने पर भी जिनआज्ञा मानने से जीवका बुरा न हो, ऐसे कोई सूक्ष्म अर्थ हैं; उनमें से किसी को कोई अन्यथा प्रमाणतामें लाये तो भी उसका विशेष दोष नहीं है।
वही गोम्मटसार में कहा है :
सम्माइट्ठी जीवो उवइटुं पवयणं तु सद्दहदि । सद्दहदि असब्भावं अजाणमाणो गुरुणियोगा ।। (गाथा २७ जीवकाण्ड)
अर्थ :- सम्यग्दृष्टि जीव उपदेशित सत्य वचनका श्रद्धान करता है और अजानमान गुरुके नियोगसे असत्यका भी श्रद्धान करता है - ऐसा कहा है।
पुनश्च , हमें भी विशेष ज्ञान नहीं है और जिन आज्ञा भंग करनेका बहुत भय है, परन्तु इसी विचारके बलसे ग्रंथ करने का साहस करते हैं। इसलिये इस ग्रंथ में जैसा पूर्व ग्रंथोंमें वर्णन है वैसा ही वर्णन करेंगे। अथवा कहीं पूर्व ग्रंथोंमें सामान्य गूढ वर्णन था, उसका विशेष प्रगट करके वर्णन यहाँ करेंगे। सो इसप्रकार वर्णन करने में मैं तो बहुत सावधानी रखूगा। सावधानी करने पर भी कहीं सूक्ष्म अर्थका अन्यथा वर्णन हो
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