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काशी निवासी कविवर वृन्दावनदासको लिखे पत्रमें पंडित जयचंद छाबड़ाने विक्रम संवत् १८८० में मोक्षमार्गप्रकाशकके अपूर्ण होने की चर्चा एवं मोक्षमार्गप्रकाशकको पूर्ण करने के उनके अनुरोधको स्वीकार करने में असमर्थता व्यक्त की है।
अतः यह तो निश्चित है कि वर्तमान प्राप्त मोक्षमार्गप्रकाशक अपूर्ण है, पर प्रश्न यह रह जाता है कि इसके आगे मोक्षमार्गप्रकाशक लिखा गया या नहीं? इसके आकार के सम्बन्ध में साधर्मी भाई ब्र० रायमलने अपनी इन्दध्वज विधान महोत्सव पत्रिका में विक्रम संवत् १८२१ में इसे बीस हजार श्लोक प्रमाण लिखा है तथा इन्होंने ही अपने चर्चा-संग्रह ग्रंथके बाहर हजार श्लोक प्रमाण होनेका उल्लेख किया है।
ब्र० रायमल पंडित टोडरमलजी के अनन्य सहयोगी एवं नित्य निकट सम्पर्कमें रहने वाले व्यक्ति थे। उनके द्वारा लिखे गये उक्त उल्लेखोंको परस्पर विरोधी उल्लेख कह कर अप्रमाणित घोषित कर देना अनुसंधान के महत्वपूर्ण सूत्र की उपेक्षा करना होगा। गंभीरता से विचार करनेपर ऐसा लगता है कि बारह हजार श्लोक प्रमाण तो प्राप्त मोक्षमार्गप्रकाशकके सम्बन्धमें हैं, क्योंकि प्राप्त मोक्षमार्गप्रकाशक है भी इतना ही; किन्तु बीस हजार श्लोक प्रमाण वाला उल्लेख उसके अप्राप्तांशकी ओर संकेत करता है।
__ मेरा अनुमान है कि इस ग्रंथ का अप्राप्तांश उनके अन्य सामान के साथ तत्कालीन सरकारने जब्त कर लिया गया होगा और यदि उनका जब्ती का सामान राजकोषमें सुरक्षित होगा तो निश्चय ही उनके अध्ययन की अन्य सामग्री व बाकी का मोक्षमार्गप्रकाशक भी उसमें होने चाहिए।
उनके जब्त किये गये सामान की एक सूची भी लेखक के द्वारा देखी गई है, पर उसके बारे में अभी विस्तार से कुछ लिखना सम्भव नहीं है।
यह ग्रंथ विवेचनात्मक गद्यशैली में लिखा गया है। प्रश्नोत्तरों द्वारा विषय को बहत गहराई से स्पष्ट किया गया है। इसका प्रतिपाद्य एक गंभीर विषय है, पर जिस विषयको
-------और लिख्याय कि टोडरमलजी कृत मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रंथ पूर्ण भया नहीं, ताको पूरण करना योग्य है। सो कोई एक मूल ग्रंथकी भाषा होय तो हम पूरण करें। उनकी बुद्धि बड़ी थी यातें बिना मूल ग्रंथके आश्रय उनने किया। हमारी एती बुद्धि नाहीं, कैसे पूरण करें। वृन्दावन विलास, १३२
२ पंडित टोडरमलजी : व्यक्तित्व और कर्तृत्व, परिशिष्ट १
प्रस्तुत ग्रंथ, प्रस्तावना, १७
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