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________________ २८० ] Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इस तरह दो प्रकार से चरणानुयोग मैं उपदेश जानना । तथा चरणानुयोगमें तीव्र कषायोंका कार्य छुड़ाकर मन्दकषायरूप कार्य करने का उपदेश देते हैं। यद्यपि कषाय करना बुरा ही है, तथापि सर्व कषाय न छूटते जानकर जितने कषाय घटे उतना ही भला होगा ऐसा प्रयोजन वहाँ जानना । जैसे जिन जीवोंके आरम्भादि करनेकी व मन्दिरादि बनवाने की, व विषय सेवन की व क्रोधादि करने की इच्छा सर्वथा दूर होती न जाने, उन्हें पूजा - प्रभावनादिक करनेका व चैत्यालयादि बनवानेका व जिनदेवादिकके आगे शोभादिक, नृत्य -गानादिक करनेका व धर्मात्मा पुरुषों की सहाय आदि करने का उपदेश देते हैं; क्योंकि इनमें परम्परा कषायका पोषण नहीं होता । पापकार्योंमें परम्परा कषायका पोषण होता है, इसलिये पापकार्योंसे छुड़ाकर इन कार्योंमें लगाते हैं। तथा थोड़ा-बहुत जितना छूटना जाने उतना पापकार्य छुड़ाकर उन्हें सम्यक्त्व व अणुव्रतादि पालनेका उपदेश देते हैं। तथा जिन जीवोंके सर्वथा आरम्भादिककी इच्छा दूर हुई है, उनको पूर्वोक्त पूजादिक कार्य व सर्व पापकार्य छुड़ाकर महाव्रतादि क्रियाओंका उपदेश देते हैं। तथा किंचित् रागादिक छूटते जानकर उन्हें दया, धर्मोपदेश, प्रतिक्रमण आदि कार्य करनेका उपदेश देते हैं। जहाँ सर्व राग दूर हुआ हो वहाँ कुछ करनेका कार्य ही नहीं रहा; इसलिये उन्हें कुछ उपदेश ही नहीं है । - ऐसा क्रम जानना । - [ मोक्षमार्गप्रकाशक — तथा चरणानुयोगमें, कषायी जीवोंको कषाय उत्पन्न करके भी पापको छुड़ाते हैं और धर्ममें ही लगाते हैं। जैसे पापका फल नरकादिके दुःख दिखाकर उनको भय कषाय उत्पन्न करके पापकार्य छुड़वाते हैं, तथा पुण्यके फल स्वर्गादिकके सुख दिखाकर उन्हें लोभ कषाय उत्पन्न करके धर्मकार्योंमें लगाते हैं । तथा यह जीव इन्द्रियविषय, शरीर, पुत्र, धनादिकके अनुरागसे पाप करता है, धर्म पराङ्मुख रहता है; इसलिये इन्द्रियविषयोंको मरण, क्लेशादिके कारण बतलाकर उनमें अरति कषाय कराते हैं । शरीरादिको अशुचि बतलाकर वहाँ जुगुप्सा कषाय कराते हैं; पुत्रादिको धनादिकके ग्राहक बतलाकर वहाँ द्वेष कराते हैं; तथा धनादिकको मरण, क्लेशादिका कारण बतलाकर वहाँ अनिष्टबुद्धि कराते हैं। इत्यादि उपायोंसे विषयादिमें तीव्रराग दूर होने से उनके पापक्रिया छूटकर धर्ममें प्रवृत्ति होती है। तथा नामस्मरण, स्तुतिकरण, पूजा, दान, शीलादिकसे इसलोकमें दारिद्रय कष्ट दूर होते हैं, पुत्र -धनादिककी प्राप्ति होती है, इसप्रकार निरूपण द्वारा उनके लोभ उत्पन्न करके उन धर्मकार्योंमें लगाते हैं । इसीप्रकार अन्य उदाहरण जानना । यहाँ प्रश्न है कि कोई कषाय छुड़ाकर कोई कषाय कराने का प्रयोजन क्या ? Please inform us of any errors on [email protected] —
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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