________________
Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
१९६]
[मोक्षमार्गप्रकाशक
ऐसा ही समयसार के कलशमें कहा है :
रागजन्मनि निमित्ततां परद्रव्यमेव कलयन्ति ये तु ते ।
उत्तरन्ति न हि मोहवाहिनीं शुद्धबोधविधुरान्धबुद्धयः ।। २२१ ।। इसका अर्थ :- जो जीव रागादिककी उत्पत्तिमें परद्रव्यहीका निमित्तपना मानते हैं, वे जीव - शुद्धज्ञान से रहित अन्धबुद्धि हैं जिनकी – ऐसे होते हुए मोहनदीके पार नहीं उतरते हैं।
तथा समयसारके 'सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार' में - जो आत्माको अकर्ता मानता है और यह कहता है कि कर्म ही जगाते-सुलाते हैं, परघातकर्मसे हिंसा है, वेदकर्मसे अब्रह्म है, इसलिये कर्म ही कर्ता है - उस जैनीको सांख्यमती कहा है। जैसे सांख्यमती आत्माको शुद्धमानकर स्वच्छन्द होता है, उसी प्रकार यह हुआ।
तथा इस श्रद्धान से यह दोष हुआ कि रागादिकको अपना नहीं जाना, अपनेको अकर्ता माना, तब रागादिक होने का भय नहीं रहा तथा रागादिकको मिटाने का उपाय करना नहीं रहा; तब स्वच्छन्द होकर खोटे कर्मोका बन्ध करके अनन्त संसारमें रुलता है।
यहाँ प्रश्न है कि समयसार में ही ऐसा कहा है :
“वर्णाद्या वा रागमोहादयो वा भिन्ना भावाः सर्व एवास्य पुंस: "
इसका अर्थ :- वर्णादिक अथवा रागादिक भाव हैं वे सभी इस आत्मा से भिन्न हैं। तथा वहीं रागादिक को पुद्गलमय कहा है, तथा अन्य शास्त्रोंमें भी आत्माको रागादिकसे भिन्न कहा है; सो वह किस प्रकार है ?
उत्तर :- रागादिकभाव परद्रव्यके निमित्त से औपाधिकभाव होते हैं, और यह जीव उन्हें स्वभाव जानता है। जिसे स्वभाव जाने उसे बुरा कैसे मानेगा और उसके नाश का उद्यम किसलिये करेगा? इसलिये यह श्रद्धान भी विपरीत है। उसे छुड़ाने के लिये स्व की अपेक्षा रागादिकको भिन्न कहा है और निमित्तकी मुख्यता से पुद्गलमय कहा है। जैसे - वैद्य रोग मिटाना चाहता है; यदि शीत की अधिकता देखता है तब उष्ण औषधि बतलाता है, और यदि आतापकी अधिकता देखता है तब शीतल औषधि बतलाता है। उसी प्रकार श्री गुरु रागादिक छुड़ाना चाहते हैं; जो रागादिकको परका मान कर स्वच्छन्द होकर निरुद्यमी होता है, उसे उपादान कारणकी मुख्यतासे रागादिक आत्माके हैं - ऐसा श्रद्धान कराया है; तथा जो रागादिक को अपना स्वभाव मानकर उनके नाश का
'वर्णाद्या वा रागमोहादयो वा भिन्ना भावाः सर्व एवस्य पुंसः । तेनैवान्तस्तत्त्वतः पश्यतोऽमी नो दृष्टाः स्युर्दष्टमेकं परं स्यात् ।। (समयसार कलश ३७)
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com