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________________ १८२] Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जे वि पडंति च तेसिं जाणंता लज्जागारवभयेण । तेसिं पि णत्थि बोही पावं अणुमोयमाणाणं ।। १३ ।। ( दर्शनपाहुड़ ) जो जानते हुए भी लज्जा, गारव और भयसे उनके पैरों पड़ते हैं उनके भी बोधि अर्थात् सम्यक्त्व नहीं है। कैसे हैं वे जीव? पापकी अनुमोदना करते हैं। पापियोंका सन्मानादि करनेसे भी उस पापकी अनुमोदनाका फल लगता I तथा कहते हैं : जस्स परिग्गहगहणं अप्पं बहुयं च हवइ लिंगस्स । सो गरहिउ जिणवयणे परिगहरहिओ णिरायारो ।।१९।। ( सूत्रपाहुड़ ) जिस लिंगके थोड़ा व बहुत परिग्रहका अंगीकार हो वह जिनवचनमें निन्दा योग्य है। परिग्रह रहित ही अनगार होता है। तथा कहते हैं : [ मोक्षमार्गप्रकाशक धम्मम्मि णिप्पवासो दोसावासो य उच्छुफुल्लसमो । णिप्फलणिग्गुणयारो णडसवणो णग्गरूवेण ।। ७९ ।। (भावपाहुड़) अर्थ :- जो धर्ममें निरुद्यमी है, दोषोंका घर है, इक्षुफूल समान निष्फल है, गुणके आचरण से रहित है; वह नग्नरूपसे नट - श्रमण है, भांडवत् वेशधारी है। अब, नग्न होनेपर भांडका दृष्टान्त सम्भव है; परिग्रह रखे तो यह दृष्टान्त भी नहीं बनता । जे पावमोहियमई लिंगं घेत्तू ण जिणवरिंदाणं । पावं कुणंति पावा ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि ।। ७८ ।। ( मोक्षपाहुड़ ) अर्थ :- पापसे मोहित हुई है बुद्धि जिनकी ऐसे जो जीव जिनवरों का लिंग धारण करके पाप करते हैं, वे पापमूर्ति मोक्षमार्गमें भ्रष्ट जानना । तथा ऐसा कहा : जे पंचचेलसत्ता गंथग्गाही य जायणासीला । आधाकम्मम्मि रया ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि ।। ७९ ।। (मोक्षपाहुड़ ) अर्थ :- जो पंचप्रकार वस्त्रमें आसक्त हैं, परिग्रहको ग्रहण करनेवाले हैं, याचनासहित हैं, अध:कर्म दोषोंमें रत हैं; उन्हें मोक्षमार्गमें भ्रष्ट जानना । और भी गाथा सूत्र वहाँ उस श्रद्धानको दृढ़ करनेके लिये कहे हैं वे वहाँसे जानना। तथा कुन्दकुन्दाचार्यकृत “ लिंगपाहुड़ " है, उसमें मुनिलिंग धारण करके जो हिंसा, आरम्भ, यंत्र-मंत्रादि करते हैं उनका बहुत निषेध किया है। " तथा गुणभद्राचार्यकृत “ आत्मानुशासन ” में ऐसा कहा है : इतस्ततश्च त्रस्यन्तो विभाववर्य्यां यथा मृगाः। व्नाब्दसन्त्यग्रामं कलौ कष्टं तपस्विनः ।।१९७।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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