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तीसरा अधिकार]
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काल असंख्यात पुद्गल परावर्तन मात्र है और पुद्गल परावर्तनका काल ऐसा है जिसके अनन्तवें भागमें भी अनन्त सागर होते हैं। इसलिए इस संसारीके मुख्यतः एकेन्द्रिय पर्यायमें ही काल व्यतीत होता है।
__ वहाँ एकेन्द्रियके ज्ञान-दर्शनकी शक्ति तो किंचित्मात्र ही रहती है। एक स्पर्शन इन्द्रियके निमित्तसे हुआ मतिज्ञान और उसके निमित्तसे हुआ श्रुतज्ञान तथा स्पर्शनइन्द्रियजनित अचक्षुदर्शन - जिनके द्वारा शीत-उष्णादिकको किंचित् जानते-देखते हैं। ज्ञानावरण-दर्शनावरणके तीव्र उदयसे इससे अधिक ज्ञान-दर्शन नहीं पाये जाते और विषयोंकी इच्छा पायी जाती है जिससे महा दुःखी हैं। तथा दर्शनमोहके उदयसे मिथ्यादर्शन होता है उससे पर्यायका ही अपनेरूप श्रद्धान करते हैं, अन्य विचार करनेकी शक्ति ही नहीं है।
तथा चारित्रमोहके उदयसे तीव्र क्रोधादिक-कषायरूप परिणमित होते हैं; क्योंकि उनके केवलीभगवानने कृष्ण, नील, कापोत यह तीन अशुभ लेश्या ही कही हैं और वे तीव्र कषाय होने पर ही होती हैं। वहाँ कषाय तो बहुत हैं और शक्ति सर्व प्रकारसे महा हीन है इसलिए बहुत दुःखी हो रहे हैं, कुछ उपाय नहीं कर सकते।
यहाँ कोई कहे कि – ज्ञान तो किंचित्मात्र ही रहा है, फिर वे क्या कषाय करते हैं ? समाधान :- ऐसा कोई नियम तो है नहीं कि जितना ज्ञान हो उतनी ही कषाय हो। ज्ञान तो जितना क्षयोपशम हो उतना होता है। जैसे किसी अंधे-बहरे पुरूषको ज्ञान थोड़ा होने पर भी बहुत कषाय होती दिखाई देती है, उसी प्रकार एकेन्द्रियके ज्ञान थोड़ा होने पर भी बहुत कषायका होना माना गया है।
तथा बाह्य कषाय प्रगट तब होती है, जब कषायके अनुसार कुछ उपाय करे परन्तु वे शक्तिहीन हैं इसलिये उपाय कुछ कर नहीं सकते, इससे उनकी कषाय प्रगट नहीं होती। जैसे कोई पुरूष शक्तिहीन है उसको किसी कारणसे तीव्र कषाय हो, परन्तु कुछ कर नहीं सकता, इसलिये उसकी कषाय बाह्यमें प्रगट नहीं होती, वह अति दुःखी होता है; उसी प्रकार एकेन्द्रिय जीव शक्तिहीन हैं; उनको किसी कारणसे कषाय होती है परन्तु कुछ कर नहीं सकते, इसलिये उनकी कषाय बाह्यमें प्रगट नहीं होती, वे स्वयं ही दुःखी होते हैं।
तथा ऐसा जानना कि जहाँ कषाय बहुत हो और शक्ति हीन हो वहाँ बहुत दुःख होता है और ज्यों-ज्यों कषाय कम होती जाये तथा शक्ति बढ़ती जाये त्यों-त्यों दुःख कम होता है। परन्तु एकेन्द्रियोंके कषाय बहुत और शक्ति हीन, इसलिये एकेन्द्रिय जीव महा दुःखी हैं। उनके दुख वे ही भोगते हैं और केवली जानते हैं। जैसे - सन्निपात के रोगीका
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