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इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है
प्रकाशकीय निवेदन
मंगलम् भगवान वीरो, मंगलम् गौतमो गणी। मंगलम् कुन्दकुन्दार्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।।
परमपूज्य देवाधिदेव शासननायक भगवान श्री महावीर स्वामी और प्रमुख गणधरदेव प्रभुश्री गौतमस्वामी द्वारा प्रवाहित जिनशासन की परम्परा में भरत क्षेत्र को पावन करने वाले एक महान समर्थ दिग्गज आचार्य श्री कुंदकुंदाचार्य देव हुए। जिनका नाम भगवान श्री महावीर स्वामी और गणधरदेव श्री गौतम स्वामी के बाद मंगलाचरण में तृतीय स्थान पर लिया जाता है। जिनशासन के स्तम्भ श्री कुंदकुंदाचार्य!, हे जैनधरम के गौरव श्री कुंदकुंदाचार्य! ऐसी भरत-भूमि की भव्य विभूति श्री कुंदकुंदाचार्य सदेह विदेह क्षेत्र गये और वहाँ ८ दिन रहकर भगवान श्री देवाधिदेव श्री सीमंधरप्रभु की दिव्य ध्वनि का साक्षात् रसपान किया और वहाँ से आकर भारत के भव्यों पर परम करूणा करके परम आध्यात्मिक परमागम शास्त्र श्री समयसार जी आदि की रचना की। श्री समयसार जी कोई अलौकिक-अद्भुत-अजोड़-अद्वितीय ग्रंथाधिराज है।
इस ग्रंथाधिराज श्री समयसार जी को देखते ही पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी को ऐसा लगा कि उन्होंने पाने योग्य सब पा लिया है - उनके सहज हृदयोद्गार निकले कि - अहो! यह तो अशरीरी होने का शास्त्र है।
स्वानुभवमूर्ति! अध्यात्म युगप्रवर्तक! पूज्य गुरुदेव श्री ने श्री समयसार जी परमागम के ऊपर जाहिर सभा में १९ बार अध्यात्मरस से
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