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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है उत्तर : ज्ञानी को इन्द्रियज्ञान अनात्मा है, इन्द्रियज्ञान वह आत्मा का ज्ञान नहीं है। ये परमार्थ ज्ञान नहीं है। __परमार्थ वचनिका में कहा है-ज्ञानी को परसत्तावलंबी ज्ञान बंध का कारण है। समयसार गाथा ३१य इंद्रियाणि जित्वा ज्ञानस्वभावाधिकं जानात्यात्मानम्। तं खलु जितेन्द्रियं ते भणंति ये निश्चिता: साधवः।।३१।। अन्वयार्थ :- जो इन्द्रियों को जीतकर ज्ञानस्वभाव के द्वारा अन्य द्रव्य से अधिक आत्मा को जानते हैं उनको, जो निश्चयनय में स्थित साधु हैं वे, वास्तव में जितेन्द्रिय कहते हैं।।४२२ ।। (श्री प्रवचनरत्नाकर, भाग १७२, अलिंग ग्रहण बोल १ के ऊपर पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से) * द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय और इन्द्रियों के विषय-भगवान, भगवान की वाणी और उन सम्बन्धी होने वाला ज्ञान-इन तीनों का लक्ष छोड़कर जो इनसे भिन्न भगवान ज्ञायक है-ग्राहक (जाणनारो, जाननहार जो त्रिकाली ज्ञाताद्रष्टा) है, इसको जो पकड़ता है, ग्रहता है, और जो अनुभवता है, उसे इन्द्रियजित कहकर समकिती जिन कहा है। क्योंकि आत्मा का स्वरूप जिनस्वरूप है।।४२३ ।। ( श्री प्रवचनरत्नाकर, भाग १७२, अलिंग ग्रहण बोल १ के ऊपर पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से) * यहाँ कहते हैं जिनको जीतना है-ऐसी इन लिंगो (इन्द्रियों) द्वारा जानना होवे-तो ये जानना ही आत्मा का नहीं है। जिन से भिन्न होना २०९ *ज्ञायक नहीं है अन्य का Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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