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*पतत्त्व सने તેના ભેદોનું વર્ણન *
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વ્યવહાર સમ્યગ્દર્શનમાં જીવાદિ સાત તત્ત્વોને શ્રદ્ધાન કરવાનું કહ્યું તે તત્ત્વોનું હવે વર્ણન કરે છે. તેમાં પ્રથમ જીવતત્ત્વનું વર્ણન ત્રણ શ્લોકમાં કરે છે
[uथा: ४-५-६] बहिरातम अंतआतम परमातम जीव त्रिधा है, देह जीवको एक गिनें बहिरातम तत्त्वमुधा है। उत्तम-मध्यम-जधन त्रिविधके अन्तर-आतमज्ञानी, द्विविध संगबिन शुद्धउपयोगी मुनि उत्तम निजध्यानी।।४।।
मध्यम अंतर-आतम है जे देशव्रती अनगारी, जधन कहे अविरत समदृष्टि, तीनों शिवमगचारी। सकल-निकल परमातम द्वैविध , तिनमें घाति निवारी, श्री अरिहन्त सकलपरमातम, लोकालोक निहारी।।५।।
ज्ञानशरीरी त्रिविध कर्ममल वर्जित सिद्ध महंता, ते हैं निकल-अमल-परमातम भोगैं शर्म अनंता। बहिरातमता हेय जानि-तजि अंतरआतम हूजै, परमातमको ध्याय निरंतर जो नित आनंद पूजै।।६।।
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