________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
पाठ पहला
देव-दर्शन
अति पुण्य उदय मम आया, प्रभु तुमरा दर्शन पाया। अब तक तुमको बिन जाने, दुख पाये निज गुण हाने।। पाये अनंते दुःख अब तक, जगत को निज जानकर। सर्वज्ञ भाषित जगत हितकर, धर्म नहिं पहिचान कर।।
भव बंधकारक सुखप्रहारक, विषय में सुख मानकर। निज पर विवेचक ज्ञानमय, सुखनिधि-सुधा नहिं पान कर।।१।। तब पद मम उर में आये, लखि कुमति विमोह पलाये। निज ज्ञान कला उर जागी, रुचि पूर्ण स्वहित में लागी ।। रूचि लगी हित में आत्म के, सतसंग में अब मन लगा। मन में हुई अब भावना, तव भक्ति में जाऊँ रँगा ।। प्रिय वचनकी हो टेव, गुणिगण गान में ही चित्त पगै । शुभ शास्त्र का नित हो मनन, मन दोष वादनतें भगैं।। २।।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com