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अध्यापक – बताया था न, कि जो सब द्रव्यों में न रहकर अपने-अपने द्रव्यों में
ही रहते हैं वे विशेष गुण हैं। जैसे जीव के ज्ञान, दर्शन, चारित्र,
सुख आदि। पुद्गल में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण आदि। छात्र - द्रव्य, गुण, पर्याय के जानने से लाभ क्या है ? अध्यापक - हम तुम भी तो जीव द्रव्य हैं, और द्रव्य गुणों का पिण्ड होता है,
अतः हम भी गुणों के पिण्ड हैं। ऐसा ज्ञान होने पर “हम दीन गुणहीन हैं"- ऐसी भावना निकल जाती हैं; तथा मेरे में अस्तित्व गुण है अतः मेरा कोई नाश नहीं कर सकता है, ऐसा ज्ञान होने पर अनंत निर्भयता आ जाती है।
ज्ञान हमारा गुण है, उसका कभी नाश नहीं होता। अज्ञान और राग-द्वेष आदि स्वभाव से विपरीत भाव (विकारी पर्याय ) हैं,
इसलिए आत्मा के आश्रय से उनका प्रभाव हो जाता है। प्रश्न -
१. द्रव्य किसे कहते हैं ? २. गुण किसे कहते हैं ? वे कितने प्रकार के होते हैं ? ३. सामान्य गुण किसे कहते हैं ? वे कितने हैं ? प्रत्येक की परिभाषा
लिखिए। ४. विशेष गुण किसे कहते हैं ? जीव और पुद्गल के विशेष गुण बताइए। ५. पर्याय किसे कहते हैं ? ६. द्रव्य , गुण , पर्याय समझने से क्या लाभ है ?
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