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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रात्मा के समस्त प्रदेशों में तथा निगोद से लेकर मोक्ष तक की समस्त हालतों में पाया जाता है। अतः आत्मा को ज्ञानमय कहा जाता है। छात्र - आत्मा में ऐसे कितने गुण हैं ? अध्यापक – आत्मा में ज्ञान जैसे अनंत गुण हैं, आत्मा में ही क्या समस्त द्रव्यो में, प्रत्येक में, अपने-अपने अलग-अलग अनंत-अनंत गुण हैं। छात्र - तो हमारी प्रात्मा अनंत गुणों का भंडार हैं ? अध्यापक – भंडार क्या ? ऐसा थोड़े ही है कि प्रात्मा अलग हो और गुण उसमे भरे हो, जो उसे गुणों का भंडार कहें, वह तो गुणमय ही है, वह तो गुणो का अखण्ड पिण्ड है। छात्र - वे अनंत गुण कौन-कौन से हैं ? अध्यापक – क्या बात करते हो, क्या अनंत भी गिनाये या बताए जा सकते हैं ? छात्र - कुछ तो बताइये? अध्यापक – गुण दो प्रकार के होते हैं, सामान्य और विशेष। जो गुण सब द्रव्यों में रहते हैं, उनको सामान्य गुण कहते हैं और जो सब द्रव्यों में न रहकर अपने-अपने द्रव्य में हों, उन्हें विशेष गुण कहते है। जैसे अस्तित्व गुण सब द्रव्यों में पाया जाता है, अतः वह सामान्य गुण हुअा और ज्ञान गुण सिर्फ आत्मा में ही पाया जाता हैं, अतः जीव द्रव्य का विशेष गुण हुआ। - सामान्य गुण कितने होते हैं ? प्रध्यापक – अनेक, पर उनमें छ: मुख्य हैं - अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व , अगुरुलघुत्व और प्रदेशत्व। जिस शक्ति के कारण द्रव्य का कभी भी प्रभाव ( नाश) তাৰ २४ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008224
Book TitleBalbodh Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1995
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, & Religion
File Size573 KB
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