SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates बेटी – हाँ, वे पाँच होती हैं । स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण। माँ - अच्छा बोलो स्पर्शन इन्द्रिय किसे कहते हैं ? बेटी – जिससे छू जाने पर हल्का-भारी, रूखा-चिकना, कड़ा-नरम और ठंडा-गरम का ज्ञान होता है, उसे स्पर्शन इन्द्रिय कहते हैं। माँ - जानता तो आत्मा ही है न? बेटी – हाँ! हाँ !! इन्द्रियाँ तो निमित्त मात्र हैं। - इसी प्रकार जिससे खट्टा, मीठा, कड़वा, कषायला और चरपरा स्वाद जाना जाता है, वही रसना इन्द्रिय है। जीभ को ही रसना कहते हैं। माँ – और स्पर्शन क्या है ? बेटी – स्पर्शन तो सारा शरीर ही हैं। हाँ ! और जिससे हम सूंघते हैं, वही नाक तो घ्राण इन्द्रिय कहलाती है, यह सुगन्ध और दुर्गन्ध के ज्ञान में निमित्त होती है। माँ - और रंग के ज्ञान में निमित्त कौन है ? बेटी – आँख। इसी को चक्षु कहते हैं। जिससे काला, नीला, पीला, लाल और सफेद आदि रंगों का ज्ञान हो, वही तो चक्षु इन्द्रिय है और जिनसे हम सुनते हैं, वे ही कान हैं; जिन्हें कर्ण या श्रोत्र इन्द्रिय कहा जाता है। माँ - तू तो सब जानती है, पर यह बता कि ये पाँचों ही इन्द्रियाँ किस वस्तु के जानने में निमित्त हुई ? बेटी – स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और आवाज व शब्दों के जानने में ही निमित्त १७ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008224
Book TitleBalbodh Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1995
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, & Religion
File Size573 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy