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अध्यापक - और नहीं तो क्या ? बिना साधु हुए कोई भगवान बन सकता है
क्या ? उन्होंने तीस वर्ष की यौवना-वस्था में नग्न दिगम्बर साधु होकर घोर तपश्चरण किया था। लगातार बारह वर्ष की आत्म
साधना के बाद उन्होंने केवलज्ञान की प्राप्ति की थी। पहला छात्र - इसका मतलब यह हुआ कि वे ४२ वर्ष की उम्र में केवलज्ञानी
बन गये थे। अध्यापक – हाँ, फिर उनका लगातार ३० वर्ष तक सारे भारतवर्ष में
समवशरण सहित विहार तथा दिव्यध्वनि द्वारा तत्त्व का उपदेश होता रहा। अंत में पावापुर में आत्म-ध्यान में लीन हो ७२ वर्ष
की आयु में दीपावली के दिन मुक्ति प्राप्ति की। दूसरा छात्र – यह पावापुर कहाँ है ? अध्यापक - पावापुर बिहार में नवादा रेलवेस्टेशन के पास में है। तीसरा छात्र- तो दिपावली भी उनकी मुक्ति-प्राप्ति की खुशी में मनाई जाती
है? – हाँ! हाँ!! दीपावली कहो चाहे महावीर निर्वाणोत्सव, एक ही बात है। उसी दिन उनके प्रमुख शिष्य इन्द्रभूति गौतम को केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। वे गौतम गणधर के नाम से जाने
जाते हैं। पहला छात्र – वे तीस वर्ष तक क्या उपदेश देते रहे ? अध्यापक – यह बात तो तुम विस्तार से शाम की सभा में विद्वानों के मुख
से ही सुनना। मैं तो अभी उनके द्वारा दी गई दो चार शिक्षायें बताये देता हूँ :
अध्यापक
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